________________ प्रत्येक % 3D | सप्त-हस्तमानां मनोहरां // चांदनी वीरतीर्थेश-प्रतिमां स ह्यपूजयत् // 6 // // प्रतिपाख्य | निजमायु-र्जगाम त्रिदशालयं // तदासी कुब्जिकानाम्नीं / प्रतिमामार्चयत्ततः // 70 // तपरित्रं त्रान्यदा समायातो / विद्यासिद्धो विशुद्धधीः // श्राजस्ता प्रतिमां लक्त्या / पूजयंस्तत्र तस्थि१०६ वान् // 1 // मंदीभूतस्तया दास्या / श्राद्धः शुश्रुषितश्चिरं // प्रसन्नःसोऽप्यदात्तस्यै / गुटिकां दिव्यरूपदां // 7 // तस्याः प्रत्नावतः साभू-दिव्यरूपा सुरीसमा // कदाचिच्चंगप्रद्योतस्तामोषीबुलाकृति // 73 // स चंचलमनास्तस्या / आमंत्रणकृते निजां // पूती प्रेषीदियं गत्वा / नृपसंदेशमन्यधात् // 14 // ऊचे सा नाग्यमेवैत-न्मम चेत्स नवेत्पतिः // परं नाहं समन्येम्ये-तया प्रतिमया विना // 35 // चंप्रद्योतभूपश्चे-स्वयमादातुमेष्यति // तदाहमागमिष्यामि / नेष्यति प्रतिमां यदि // 6 // श्रुत्वेति सा ततो गत्वा / प्रद्योतस्य न्यवेदयत् ॥प्रतिमां चांदनीं सोऽपि / कारयामास तादृशीं // 7 // तामारोप्यानल गिरौ / गजेंडे प्राचलन्नृपः // रात्रौ वीतनयउंग्रे। प्राप्तो दास्या सहामिलत् // 7 // आदाय प्र. तिमां जीव-स्वामिनस्तां पुरातनीं // नव्यां तत्र तथा मुक्त्वा / समं दास्या ययौ नृपः // P.P.AC.Gunratnasuri M.S.. Jun Con Aaradhak Trust