________________ 15 जो निजं राज्यपालयत् // खेचर चरैजूंपै-नम्यमानपदांबुजः // 56 // कियत्यपि गते || का। सजायाँ संस्थितं नृपं // विशालायुधशालाया। रक्षितेति व्यजिझपत् // 57 // दे| वाय यावदादित्य / उदेतिस्मोदयाचले // तावदायुधशालायां / चक्रं चाज्ज्वलज्ज्वलं // | // 5 // अद्य मन्ये दिवा नारी / जझे पूर्णमनोरथा // सूर्यचक्रसिव प्राप्त-कुंमलझयमंगना // एए // पूजानाव्यप्रबंधेन / विधायाष्टाह्निकामहं // चचाल चक्रमादाय / कर्तुं दिग्विजयं नृपः // 60 // भूपालचक्रवालेन / दोच्या चक्रबलेन च // सोऽखिलें साधयामास / विजयं पुष्कलावतीं // 61 // क्रमेण विक्रमाक्रांत-षट्खमदितिमंमलः / प्रत्यांगतश्चक्रवर्ती / खपुरं मणितोरणं // 6 // प्रधानानि निधानानि / संस्थुस्तत्संनिधौ नव // तस्य कार्यकराण्यासन् / रत्नान्येव चतुर्दश // 3 // षोमशसहस्रसंख्यै-यदैः संसेव्यतेस्म सः // द्वात्रिंशता सहस्रश्च / नृपैर्मुकुटमंमितैः // 64 // देवांगनाधिकश्रीका। लावण्यरसकुंपिकाः // चतुःषष्टिसहस्राणि / पत्न्यस्तस्याजवंस्तथा // 65 // लदाश्चतुरशीतिश्च / तुरगाः कुंजरा रथाः ॥कोटयः पवित्याद्या-स्तस्याभवन् पदातयः॥६६॥ तावन्माना महापामाः / पत्तनान्युत्तमानि च ॥छा. || P.P.Ac. GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust