________________ सोधानं तन्महत्तम // 36 // चौर्य हि क्रियते नैव / क्रियते चेत्कदाचन // तद्विधेयं यतो जूयो || भूयते नूरिभूतिलिः // 3 // एक्मालोच्य ते सर्वे / तस्करा सदनात्ततः // अप्रमादपरासाधोः / प्रमाद श्व निर्ययुः // 35 // गत्वा श्रेष्टयुदितस्थाने / चालायित्वेष्टिकां च तां // ददृशुः कलशं ताम्र-मयं कनं स्फुरत्ननं // ३एं // निधानं प्राप्तमित्यस्मा–कर्षादाकर्षणाय || ते // यदैव चितिपुर्हस्तान् / कृश्चिकैः खादित्तास्तदा // 40 // हंहो ही खादिता हस्ते-वे तक्किं नाम विद्यते // भूमावाहत्य स त्यक्त-स्तस्करैः संचमादिति // 1 // सर्वैरवाचि छष्दैन / वणिजा वंचिता वयं // योऽस्मान् विज्ञाय गेहांतः / प्रविष्टानुक्तवानिदं // 45 // तत्रै कस्तस्करः प्रोचे / कपटैकपटीयसा // पुरापि वणिजैकेन / वंचितस्तन्निशम्यतां // 43 // अस्मिन्नेव पुरे श्रेष्टी। विद्यते यो धनो धनी // प्रवेष्टुं तस्य गेहांतः। पश्याम्यवसरं सदा // 4 // विज्ञातमत्परीणामः श्रेष्टी निजगृहालके // वृश्चिकं स्थापयामास / कच्चोलकनियंत्रितं // 45 // अम्पदा रात्रिमध्येऽहं / प्रविष्टो गृहमंतरा // क्रूरं चौरं स मां ज्ञात्वा। श्रेष्टी खश्रेष्टिनी जगौ // // 6 // हे प्रिये लेदमूख्यं त-मुद्रारत्नं व विद्यते // प्रियाह शून्यचित्ताया। बालके वि- // %3 .: P:P. Ac: Gunrathasur M.S. Jun Gun Aaradhak Trust