________________ - पर तव दौत्याय सत्वरं // // राजकार्यं तदादृत्य / समेत्य स्वनिकेतनं // आचख्यौ यदराजा- || य, / स्वरूपं सर्वमप्यसौ // ए // श्तो राजा पुरीपार्श्वे / गर्तामेकामखानयत् // ज्ववणि खचरित्रं दिरांगारैः। समस्तां तामपूरयत् // 10 // श्तश्च गुह्यको देव-दिन्नरूपं विधाय सः // निर्ययो मंदिरात्तस्मात्स्फूर्तिमन्मूर्तिधारकः // 11 // हा हा महारत्नमिदं नरेषु / निहन्यते हीनतरेण राझा.॥ अस्त्यस्य राज्ये सचिवोऽपि कश्चि-दन्यायतोऽमुं विनिवारयेद्यः // 12 // ससित्कारं महाकार-मदीनास्यं नृपाधमै // प्रभूतैरपि निंदनिरीक्ष्यमाणोऽथ नागरैः // 13 // जलहालितसर्वांगो। निर्गत्य नगरादसौं // गर्तापार्श्वस्थितमापं / चलन्नस्मीत्यनाषत // 14 // हा हा.मा मा न नेत्यादि / तब जल्पत्सु देहिषु // ज्वालालिविकरालायां / गर्तायां सोऽपतद् पुतं. // 15 // लोकाः कंपितमूर्धानः / कष्टान्मीलितलोचनाः // ततो निवर्तितुं लग्ना। जह बैंको नृपाधमः // 16 // कणमन्यंतरं स्थित्वा / निर्ययो सोऽद्भुतं दिशन् // अदग्धवपुरुत्तीर्य / ज्वलनं जललीलया // 17 // आगत्य भूपतिं नत्वा / श्यामीभूताननश्रियं // पश्यत्सु || सर्वलोकेषु / स्मेरास्येषु जजल्प सः // 17 // गतोऽहं यमराजस्य / राजधान्या त्वेदाज्ञया / / "EP.AC. Gunraimasuri ME Jun Gun Aaradhak Trust