________________ P - - ये राजा / नानोपायनपाणिनिः॥ प्राणिनिः सह चक्रे च / विश्वाश्चर्यकृदुत्सवं ॥४७॥स एवार्थ गते काले / पतितः पृथिवीतसे // लोकैः कृतपदामृष्टि-दृष्टो हिमुखनूजा // 4 // सोऽथ वैराग्यतोऽध्याय-संसारासारतामिमां // धिग् घ्यः समस्तास्ता। ह्येतस्येवास्थिराः किल // 4 // संपदश्चमवंत्येताः / परिणामसुखप्रदाः // नाकरिष्यंस्तदेतासां / त्यागं तीर्थकरादयः // 50 // एवं विज्ञावयन्नेव / प्राप्य प्रत्येकबुझतां // द्विमुखो देवतादत्त-लिंगां दीदाप्रपन्नवान् // 51 // उक्तं च-जा इंदकेचं समलं कियंतें / दहुं पमंतं पविलुप्पमाणं // रिडिं अरिति समुपेहियाणं / पंचालरायावि समिक धम्म // 55 // वैराग्यं प्रतिपन्नमानसमतिः संजातजातिस्मृतिः / संभूतोत्तमपूर्वजन्मजणितखाध्यायशुद्धस्मृतिः // मायामोहमदप्रमादरहितः साधुक्रियासंगतो। राजा:मुखो वने विहृतवान् प्रत्येकबुद्धश्चिरं // 53 // इति श्रीप्रत्येकबुद्धचरिते छिमुखराजर्षिवर्णनो नाम द्वितीयः प्रस्तावः संपूर्णः // श्रीरस्तु // P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust