________________ 203 / शशिनं जित्वा / तारास्तदयिताः समाः // पुष्पमालामिषाध्वा / यावहत्करपंजरे // 55 // || पृष्टमुक्कान् श्यामयंती। दामयंती ततस्ततिं // द्योतयंती पुरःस्थांश्च / शुशुन्ने दीपिकेव चरित्रं सा // 56 // सख्युक्तान् राजराजीनां / गुणान्नामानि एवती // पुष्पसिंहनरेंजाये। समा गात्सा शुजाकृतिः॥५७ // तं प्रेय प्रेमपूर्णा सा / यावत्तिष्टति तत्पुरः // श्येनश्चिबीमिवा. दायो-ड्डीय वबाज खेचरः // 50 // महाखगानिधस्ताव-त्कोलाहल उदबलत् // पश्यत्स्वेव नरेंप्रेषु / खेचरो पूरतामगात् // एए // लक्ष्मीशेखरराजेन / प्रोक्तं सर्वान् नृपान्प्रति // ह्रियमाणामिमां पुत्रीं / प्रत्यानयति योऽधुना // 60 // मया तस्मै प्रदातव्या / कन्येयमिति निश्चयः // खखशक्त्यनुसारेण / तद्यतध्वमहो नृपाः // 61 // इत्याकर्ण्य समे मौन-माधायास्थुरधोमुखाः // प्रांशुप्राप्ये फले को वा / वामनो यत्नमाचरेत् // 6 // अग्रे मम बृह वातु-हतेयं हीरियं मम // तस्मादत्र निजत्रातुः / साहाय्यं किंचिदादघे // 63 // एवं विचिंत्य निर्माय / विमानं रत्नसिंहराट् // कृत्वा रूपपरावर्त / पुष्पासंहपुरोऽन्यधात् // 6 // खामिन्नस्मिन् विमाने त्व-मारोह दणमात्रतः // आनीयते यथा कन्या। खेचराधमपा. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust