________________ प्रत्येक / रतौ / तौ संसारसुखात् पराङ्मुखमती कालं व्यतिकामतः // ए६ // पर्यंतकाले स्वकलत्रयु-' क्तौ / संगृह्य तौ पंचमहावतानि // पंच स्मरंतो परमेष्टिनां तौ / पंचत्वमासादयतां सुखेन // লখিম // ए // गुणचंलो गुणधरो / गुणश्रीर्गुणमत्यमी // चत्वारो लांतके देव-लोके संजझिरे सुराः // ए // एते लांतकदेवलोकपतिना तुल्या बलेन श्रिया। शश्वबाश्वतचैत्यवंदनपरास्तीर्थेषु यात्राकराः॥दिव्यदेवपरंपरा निरनितः संसेवितांहिष्याः। स्वीयायुः प्रतिपालयंति कलयंत्यानंदवृंदोदयं // २एए // इति श्रीप्रत्येकबुद्धचरित्रे तृतीयप्रस्तावे नमिप्रथमजववर्णनो नाम प्रथमः प्रकारः // श्रीरस्तु // . स्वर्णाजिकर्णिकायुक्तो / लवणाब्धिसरःस्थितः // जंबूझीपोऽब्जवनाति / चंचसूर्यमरालनृत् // 1 // क्षेत्रे महाविदेहाख्ये / विजयः पुष्कलावती // पुरं तत्र सदोह-तोरणं मणितो. रणं // 2 // कीर्तिसारो नृपस्तत्र / द्विधा रक्षति यः दिति // राज्ञी कीर्तिमती तस्य / प्रश|| स्या शीलशालिनी // 3 // ईषन्निप्रासुखासक्ता / सा ददर्श चतुर्दश // महास्वप्नानि यामि॥ न्याः / पश्चिमे प्रहरेऽन्यदा // 4 // गजेंद्रवृषसिंहश्री-दामसोमर विध्वजाः // कुंजपद्मसरोह्य-| Jun Gun Aaradhak Trust.. Pel Ac. Gunrathasun S