Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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प्राचीन स्थितिका अन्वेषण
१०५ . कहते हैं और जिनका 'पोज' मथुरा म्यूजियममें स्थित ऋषभदेव की मूर्तिसे, जो दूसरी शती की है, मिलता है, नग्न हैं। पुरुष प्राकृतिकी मूर्तियां प्रायः नग्न हैं और आजानुबाहु हैं, जो कायोत्सर्ग मुद्रा का एक रूप है।
भारत सरकार के पुरातत्व विभागके संयुक्त निर्देशक श्री टी० एन० रामचन्द्रन्ने हड़प्पासे प्राप्त दो मूर्तियोंके सम्बन्ध में लिखा है-'हड़प्पाकी उपरोक्त दो मूर्तिकाओंने तो प्राचीन भारतीय कला सम्बन्धी आधुनिक मान्यताओंमें बड़ी क्रान्ति ला दी है। ये दोनों मूर्तिकाएं जो ऊंचाई में ४ इंचसे भी कम हैं, सिर हाथ पाद विहीन पुरुषाकार कवन्ध हैं। ... ये दोनों मूर्तिकाएं २४०० से २००० ईसा पूर्व की आंकी गई हैं । इनमेंसे एक मूर्ति चपल नर्तकका प्रतीक है। नर्तनकारी प्रतिमाके शिर, बाहु और जननेन्द्रिय पृथक बनाकर कबन्ध में बनाये हुए रन्ध्रों में जोड़े हुए थे। ........ दूसरी प्रतिमा अकृत्रिम यथाजात नग्न मुद्रावाले एक सुदृढ़ काय युवा की मूर्ति है। जिसके स्नायु पुढे बड़ी देख-रेख विवेक और दक्षता के साथ, जो मोहेजोदड़ो की उत्कीर्ण मोहरोंकी एक स्मरणीय विशेषता है, निर्माण हुए हैं । नर्तनकारी प्रतिमा इतनी सजीव और नवीन है कि यह मोहेजोदड़ो कालीन मूर्तिकाओंके निर्जीव विधि विधानोंसे नितान्त अछूती है । यह भी नग्न मुद्राधारी मालूम होती है। इससे इस सुझाव को समर्थन मिलता है कि यह उत्तर कालीन नटराज अर्थात् नाचते शिवका प्राचीन प्रतिरूप है। ..........( प्रथम नग्नमूर्ति ) हडप्पाकी मूर्तिकाके उपरोक्त गुणविशिष्ट मुद्रामें होने के कारण यदि हम उसे जैन तीर्थङ्कर अथवा ख्यातिप्राप्त तपो
१ अनेकान्त, वर्ष १४, किरण ६, पृ० १५७ ।
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