Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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जै० सा० इ० - पूर्व पीठिका
जिन मूर्तियोंको योगी की अथवा शिवकी कहा जाता है वे सब नग्न हैं । अतः यह स्पष्ट है कि द्रविड़ सभ्यता में नग्न मूर्तियों का प्रचलन था । और नग्न मूर्तियों की परम्परा द्रविड़ सभ्यताकी देन है । किन्तु यह उल्लेखनीय है कि सिन्धुघाटीसे जितनी नग्न मूर्तियाँ प्राप्त हुई है उतनी नग्न मूर्तियाँ सिन्धुघाटी सभ्यताके पश्चात् से लेकर अब तक के काल में भी प्राप्त नहीं हुईं। इससे प्रकट होता है कि आर्यों के श्रगमनके पश्चात्से नग्न मूर्तियों में कमी आनी शुरु हो गई । सम्भवतः आर्योंने द्रविड़ देवताओं को अपने देवताओं में सम्मिलित करने के साथ ही उन्हें अपने ढंग से वस्त्र वेष्ठित भी करना शुरु कर दिया ।
देवमूर्तियों की तरह द्रविड़ यति भी नग्न ही रहते थे। संन्यास आश्रमको स्वीकार करलेनेके पश्चात् आर्योंने उनमें भी वस्त्रका प्रवेश करा दिया । किन्तु नग्न मुनियोंकी, जिन्हें परमहंस कहा गया है, मान्यता में कमी नहीं आई ।
बुद्ध के समकालीन है विरोधी शास्त्राओं में से महावीर, गोशालक और पूरणकाश्यप नग्न रहते थे, यह सिद्ध है । बुद्धने भी अचेलक तपस्वीका मार्ग अंगीकार किया था । पीछे उसे छोड़ दिया । प्रारम्भ में बुद्धने भी अपने भिक्षुओं को वस्त्र के विषय में इतनी सहूलियते नहीं दी थी। अट्ठकथामें लिखा है कि भगवान के बुद्धत्व प्राप्ति बीस वर्ष तक किसी भिक्षुने गृहपति चीवर (गृहस्थ के द्वारा दिया गया वस्त्र ) धारण नहीं किया। सब पांसुकूलिक' ही रहे ( विनय पि०, पृ० २७३ ) । जीवक कौमारभृत्यकी प्राथना पर ही उन्होने गृहपति चीवर तथा कम्बलकी अनुज्ञा दी थी। इस अनुज्ञा के पश्चात् से ही भिक्षु संघ में चीवरों की बाढ़ आ गई और चीवरोंके
१ – मार्गमें फेंके गये चिथड़ोंको धारण करनेवाले ।
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