Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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श्रुतपरिचय
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में ऋषियोंकी जो तालिका दी है उसमें भी दो गाग्र्योंका निर्देश मिलता है। उनमेंसे एक गार्य याज्ञवल्क्यके समकालीन थे। ऊपर उल्लिखित सां० कारिकाके चीनी अनुवादमें सांख्य दर्शनके जिन प्राचार्योंका नाम दिया है उनमें एक गार्ग्य नाम भी है । चकि अकलङ्क देवने प्रक्रियावादियोंमें सांख्य दर्शनके पुरस्कर्ता आचार्यो को ही गिनाया है अत:यह गार्य उन्हींमें से होना चाहिए। ___ व्याघ्रभूति-सि० कौ० में दो कारिकाएं। आई हैं जिनमें व्याघ्रभूतिके मतका निर्देश है। कोलब्रुकने भी लिखा है कि व्याघ्रभूति और व्याघ्रादकी वार्तिकोंका उल्लेख अनेक ग्रन्थकारों ने किया है। अतः यह व्याघ्रभूति वैयाकरण ज्ञात होते हैं। (त. भा० टी०, प्रस्ता० पृ० ५८)।
माठर-सांख्य कारिका पर माठर वृत्तिके रचयिता माठर प्रसिद्ध हैं। अतः कपिल आदि सांख्योंके साथ उनका ही नाम निर्देश होना सम्भव है। किन्तु दृष्टिवादमें उनके मतका निराकरण होना सम्भव नहीं है क्यों कि उनका काल प्रायः ईस्वी सन्की प्रथम शतीसे पूर्व नहीं है। प्राचीन कालमें माठर नामके एक वैदिक ऋषि भी हुए हैं।
मौद्गल्यायन-तैत्तिरीय उपनिषद्में एक मौद्गल्यायनका उल्लेख है। गोपथ ब्राह्मणमें मौद्गल नामक ऋषिका नाम आया
१--'विन्दतिश्चान्द्रदौर्गादेरिष्टो भाष्येऽपि दृश्यते। व्याघ्रभूत्यादयत्स्वेनं नेह पेटुरिति स्थितम् ।' १०॥ रजी मस्जी अदि पदी तुद् क्षुध शुषि पुषी शिषिः । भाष्यानुक्ता नवेहोक्ता व्याघ्रभूत्यादिसम्मतेः ।।११।।'
--सि० को० २--'संध्यास्ति माठरश्चैव याज्ञवल्क्यः पराशरः ।
--वै० वा० इ०; भा० २, पृ० ६३ ।
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