Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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श्रुतपरिचय
६२६ समस्त द्रव्योंके अस्तित्वका और पररूप आदि चतुष्टयकी अपेक्षा उनके नास्तित्व का कथन करता है। ( क. पा. भा. १, पृ:१.०-षटखं. पु. १, पृ. ११५ ) । लोकमें जो वस्तु जिस प्रकार अस्ति अथवा नास्ति है. स्याद्वाद की दृष्टि से वही अस्ति नास्ति रूप है इत्यादि कथन अस्तिनास्तिप्रवाद करता है ( नन्दि०. चू०, मलय०,सू० ५६ तथा सम० अभ० टी०सू० १४७ )। इसमें १८ वस्तु, ३६० पाहुड़ और साठ लाख पद होते हैं।
५ ज्ञानप्रवाद-पांचो ज्ञानोंकी उत्पत्तिके कारणोंका विषयों का, ज्ञानियों और अज्ञानियों का तथा इन्द्रियोंका प्रधानरूपसे कथन करता है ( त. वा., पृ. ७५)। पांच ज्ञानों और तीन अज्ञानों का कथन करता है । ( षट्खं०, पृ. ११६)। मति श्रुत अवधि मनः पर्यय और केवल ज्ञान का कथन करता है (क. पा.१४१) । ( नन्दी. मलय. सू. ५६ । सम० अभ० टी०, सू. १४७) । इसमें १२ वस्तु, २४० पाहुड़ और एक कम एक करोड़ पद हैं।
६ सत्यप्रवाद-वचन गुप्ति का, वचन संस्कार के कारण शिर कण्ठ आदि आठ स्थानों का, बारह प्रकार की भाषा का, वक्ताओं का. अनेक प्रकार के असत्य वचन और दस प्रकार के सत्य वचनों का कथन करता है ( त० वा०, पृ०७५, षटखं०, पृ० ११६ ) । व्यवहार सत्य आदि दस प्रकार के सत्यों का और सप्तभंगी के द्वारा समस्त पदार्थों के निरूपण करने की विधि का कथन करता है ( क. पा०, पृ० ५४१) । ( नन्दि० मलय० सू० ४६ । सम० अभ० टी० सू० १४७ )। इसमें बारह वस्तु, दो सौ चालीस पाहुड़ और एक करोड़ छै पद होते हैं ।
७ आत्म प्रवाद -श्रात्मा के अस्तित्व नास्तित्व नित्यत्व अनित्यत्व कर्तृत्व भोक्तत्व आदि धर्मों का और छ काय के जोवों
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