Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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जै० ० सा० ६० पू०पीठिका
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कल्पसूत्र १ ऐसा न कभी हुआ, होता है. न होगा कि अरिहन्त, चक्रवर्ती, बलदेव अथवा वासुदेव अन्त कुलों में, प्रान्त कुलों में, तुच्छ कुलों में दरिद्र कुलों में, कृपण कुलों में, भिक्षुक कुलों में और ब्राह्मण कुलों में जन्में थे, जन्में हैं या जन्मेंगे | अरिहन्त, चक्रवर्ती, बलदेव या वासुदेव उपकुल में, भोगकुल में, राजन्य कुल में क्षत्रिय कुल में, हरिवंश कुल में अथवा इसी प्रकार के किसी अन्य कुल में जन्में थे, जन्में हैं और जन्मेंगे ।
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ललित विस्तरा १ बोधिसत्त्व चाण्डाल कुल, वेणु कार कुल, रथकार कुल, पुक्कस कुल जैसे हीन कुल्लों में जन्म नहीं लेते। वे या तो ब्राह्मण कुल में जन्म लेते हैं या क्षत्रिय कुल में । जब लोक ब्राह्मण प्रधान होता है तो ब्राह्मण कुल में जन्म लेते हैं और जब लोक क्षत्रिय प्रधान होता है तब क्षत्रिय कुलमें जन्म लेते हैं ( पृ० २१ )
महावीरके गर्भ परिवर्तन तथा जन्मका वर्णन श्राचारांग सूत्र से मिलता है । भ० महावीरके चरित्रके पश्चात् भगवान पार्श्व - नाथ और नेमिनाथका संक्षिप्त चरित है, जिसमें उनके पश्च कल्याणकों का निर्देश है । नेमिनाथसे लेकर अजित नाथ पर्यन्त का केवल अन्तर काल मात्र बतलाया है । किन्तु ऋषभ देवके पञ्च कल्याणकोंका निर्देश किया है।
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स्थविरावली में देवर्द्धि गणि तक स्थविरोंका निर्देश है । अतः यह स्पष्ट है कि श्रुत केवली भद्रबाहु उसके रचयिता नहीं हो
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