Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
View full book text
________________
श्रुतपरिचय
६६७
छठेमें श्रावककी ग्यारह प्रतिमाओं का, और सातों में बारह भिक्खु प्रतिमाओं का कथन है ।
इसका आठवाँ अध्ययन कल्पसूत्र के नाम से प्रसिद्ध है । इसमें महाबीर भगवान का वर्णन है । नौवें अध्ययन में मोहनीय कर्म के तीस बन्ध स्थानोंका वर्णन है और दसवें में बतलाया है कि श्रेणिकने चेलनाके साथ महावीर भगवान के एक साधुके -मुखसे क्या सुना ?
यतः कल्पसूत्र एक स्वतंत्र ग्रन्थ के रूप में श्व ेताम्बर सम्प्रदाय में बहुमान्य ग्रन्थ है अतः उसके सम्बन्धमें कुछ विशेष प्रकाश डालना आवश्यक है ।
इसके तीन भाग हैं। श्री वेबर के अनुसार प्रथम में भगवान महावीरका इतिवृत्त है, दूसरे भागमें उनके पूर्ववर्ती २३ तीर्थङ्करों का वर्णन है और तीसरे भाग में स्थविरावली है। और डा० विंटरनिट्स के अनुसार पहले भाग में जिन चरित दूसरे भाग में स्थविरावली और तीसरे भाग में सामाचारी है। इन तीन भागों को मिलाकर कल्पसूत्र नाम दिया गया है। कल्पसूत्रका मुख्य भाग भगवान् महावीरका जीवनवृत्त है जो बहुत विस्तार से काव्य शैलीमें निबद्ध किया गया है। उसे पढ़ते समय बौद्धग्रंथ ललित विस्तराका स्मरण आ जाता है । ललित विस्तरामें बुद्ध जन्मादिका जैसा वर्णन है, कल्प सूत्र में प्रतिपादित महावीरके जन्मादिका वर्णन उससे बहुत कुछ मिलता हुआ है । उदाहरण के लिए यहाँ दोनोंसे अनुदित करके एक प्रसंग दिया जाता है ।
1
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org