Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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जं०
० सा० इ० पू० पीठिका
इसी नियुक्ति' में आचार्य शय्यंभव को दशवैकालिक का रचयिता बतलाया है । यह शय्यंभव जिनप्रतिमा दर्शनसे प्रतिबुद्ध हुए थे और जब इन्होने गृहत्याग किया इनकी स्त्री गर्भवती थी । उसके मनक नामक पुत्र हुआ । आठ वर्ष का होने पर मनकने अपनी मातासे अपने पिता का समाचार पूछा । यह ज्ञात होने पर कि पिता साधु होगये हैं, मनक उनकी खाज में निकला और उनका शिष्य बन गया । पिताने जाना कि उसके पुत्र की आयु केवल छै मास बाकी है। उसने उसके लिये दशवैकालिक का उद्धार किया ।
इसमें तो सन्देह नहीं कि दशवैकालिक प्राचीन है और दिगम्बर सम्प्रदाय में भी उसकी मान्यता रही है । किन्तु उसका प्राचीन रूप यही था या भिन्न, यह अन्वेषणीय है । यापनीय संघ के अपराजित सूरिने भी उसपर एक टीका रची थी ।
उत्तराध्ययन– 'उत्तर' शब्द के दो अर्थ होते हैं - 'पश्चात् ' और जवाब | उत्तराध्ययन नियुक्ति के अनुसार इसका अध्ययनपठन आचारांग के पश्चात् होता था इसलिये इसे उत्तराध्ययन कहते हैं । दूसरी परम्परा के अनुसार भगवान महावीर ने अपने निर्वाण से पूर्व अन्तिम वर्षावास में छत्तीस प्रश्नों का उत्तर दिया था, उत्तराध्ययन उसीका सूचक है ।
इसमें छत्तीस अध्ययन हैं। चौथे अंगमें इनके नाम आये हैं ।
४ – 'मणगं पडुञ्च्च सेजंभवेण निजूहिया दसऽज्झयणा । वेयालियाइ ठविया तम्हा दसकालियं नाम || १५ || ' - दश० नि० ।
५--' दशवैकालिकटीकायां श्री विजयोदयायां प्रपञ्चिता उद्गमादि दोषा इति नेह प्रतन्यते ।' -भ· श्रा०, गा० ११६७ टी० ।
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