Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 740
________________ श्राचाराङ्ग वृत्ति ४१८, इण्डियन एण्टिक्केरी २८५, श्राजीविक सम्प्रदाय ४३२, ४३४, २६७, ५२३, ५५६, ४३५, ४६२, ४६६,५७०, ५८४, इन्द्रनन्दि श्रु तावतार ३३८, ५२८ इन्द्रनान्द श्रु ६५८, इन्द्रभूति २७१ से २७४ तक, आत्म प्रवाद पूर्व ६२६, ७०३, ५३३, ६७४, ६८८, ६६०, श्रादिपुराण १००, ३३६ टि०, ईरान १० आन्ध्र २१, ३१, ३२, . ईश उप० ५४, ८५, २०७, आपस्तम्बीय धर्मसूत्र ७१, ८५, ईश्वरकृष्ण २१०, ५६६, अार्यरक्षित ३८५, ४२२, ५०६, उज्जैनी २३६, २५०, २६४, ५३४, ५५८, ५८०, ३२०, ३२२, ३२६, ३२६, ३४२, अावश्यक कथा ४६७ टि०, ३४४, ३५१, ३६०, ३७५, ३७८, अावश्यक चूर्णि- ४११, ५४३, उड़ीसा ४८१,. .. ७०२, उत्कालिक श्रुत ५७६ अावश्यक टीका ५०६, ७०२, उत्तराध्ययन सूत्र १६३, १६४, अावश्यक नियुक्ति २४२, २४८, २१६, २७२, २७६, ३६५, ४००, २५७, २५८, २७५, ३७४, ३८६, ४४४, ४४५, ५२३, ५२६, ५६०,५६८, ५७६, ६२३, ६७६, ६७७, ७०१, ७०४, ७०२, उत्तराध्ययन चूर्णि ७१० आवश्यक सूत्र ५६५, ५७८, उत्तराध्ययननियुक्ति ७०४, ७१०, ६६५, ७०१, उत्तराध्ययन सूत्र वृत्ति ४१८ . अाशाधर ४३६ उत्थान श्रुत ५६३ . श्राशीविष भावना ५६३, ५६४ . उत्पादपूर्व ६२७ श्राश्वलायन ४०, ४६, १४०, उदक पेढाल पुत्र ४६१, ६४३, १६१, ५६५ उदयन ३२३, ३२४ इक्ष्वाकु १५, १६, १७८, १७६, उदय भट्ट ३१४ . १८६, १६४, उदपी ३२२, ३२८, ३३१, ३३६, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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