Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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श्रुतपरिचय
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६३ गाथाएँ हैं। पहली गाथा में पडावश्यकका कथन है । इसका रचयिता वीरभद्र को कहा जाता है ।
२ तु प्रत्याख्यान - में बाल मरण और पंडित मरणका स्वरूप समझते हुए पंडितको रोगावस्थामें क्या २ प्रत्याख्यान करना चाहिये, कैसे सम्बंधि मरण करना चाहिये आदिका कथन है ।
३ भक्त परिज्ञा-मरण के तीन प्रकार हैं-भक्त परिज्ञा, इंगिनी और पादपोपगमन । भक्त परिज्ञाके दो प्रकार हैं - विचार पूर्वक और विचार पूर्वक भोजनके छोड़ देनेको भक्त परिज्ञा कहते हैं। इसमें भक्त परिज्ञा मरणकी विधिका निरूपण है । इसमें १७२ गाथा हैं ।
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४ संस्तारक - समाधि मरणके चिये प्रासुक तृणोंकी शय्या बनाई जाती है उसे संधरा कहते हैं। इसमें १२३ गाथाओंसे संथ का कथन है ।
५ तन्दुल वैचारिक- इसमें शरीरकी रचना आदि को लेकर भगवान महावीर और गौतमके बीचमे हुए संवादका वर्णन है। गद्य और पद्य मिश्रित है । इसमें बतलाया है कि जीव गर्भमे कितने दिन रहता है कैसे प्रहार ग्रहण करता है कैसे उसका शरीर बनता है । उसमें कितनी हड्डियां स्नायु वगैरह होते हैं । इसके नामके विषयमें टीकाकार विजय विमल गणि ने लिखा ' है कि सौ वर्षकी आयुवाले पुरुषके द्वारा प्रतिदिन खाये गये चावलों की संख्या विचारसे उपलक्षित होनेके कारण इसे तन्दुल वैचारिक कहते हैं । इसकी गाथा संख्या १३६ है ।
१.... ' तन्दुलानां वर्षशतायुष्क पुरुषप्रतिदिनभोग्यानां संख्याविचारेणोपलक्षितं तन्दुलवैचारिकं नामेति । '
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