Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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श्रुतपरिचय हैं और उन अध्ययनोंके नाम भी दिये हैं दस दशाओंमेंसे चार नाम इस प्रकार है-उवासगदसा,अंतगडदसा,अणुत्तरोववाय दसा और पण्हावागरण दस । ये चारो क्रम से सातवां आठवां नौवां और दसवां अंग हैं। प्रथम दशा का नाम 'कम्मविवाग दसा' है जो ग्यारहवें अंग विपाक सूत्र का स्मरण कराता है। टीका. कार अभय देव का कहना है कि ग्यारहवें विपाक सूत्र के प्रथम श्रुतस्कन्ध का नाम कर्मविपाक दशा है। एक 'आचार दशा' है । इसे टीकाकार दशा श्रुतस्कन्ध बतलाते हैं जो छै छेद सूत्रों में से है। शेष चार दशाओं से टीकाकार भी अपने को अपरिचित बतलाते हैं।
यहाँ प्रत्येक दशा के दस दस अध्ययन बतलाये हैं। उवासग दशा नामक सातवें अंग में दस अध्ययन पाये जाते हैं। किन्तु
आठवें अंग अन्तगड दशा और नौवे अंग अनुत्तरोववास दशा में क्रम से नौवे और तेतीस अध्ययन ( वि० प्र० पृ० ५६ ) बतलाये हैं। अतः डा०वेवर का कहना था कि आठवें और नौवें अंग की जो प्रतियां हमारे सामने हैं, स्थानांग सूत्र के रचयिता के सामने उनसे भिन्न प्रतियां थीं। तथा स्थानांग में अन्तगड० और अनुत्तरोपातमें जो दस दस अध्ययन गिनाये हैं वे
१-कर्म विपाकदशा-विपाकश्रुताख्यैकादशाङ्गस्य प्रथम श्रुतस्कन्धः,...अाचार दशाः दशाश्रुतास्कन्ध इति या रूढ़ा....प्रभ व्याकरण, दशाः देशममङ्गमिति, तथा बन्धदशा-द्विगृद्धि दशा दीर्घ-दशा संक्षेपिकदशाश्चास्माकमप्रतीता इति ।'- स्था० टी०, पृ० ४८० ।
२-इण्डि० ए०, जि० १८, पृ० ३६६ अादि ।
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