Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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श्रुतपरिचय
६६१ इन सबका संकलन एक ही व्यक्तिके द्वारा हुआ होगा। ये सब आपसमें एक शृखला की तरह बद्ध हैं । अर्थात् आरम्भिक शैली आदि की दृष्टि से शुरू के चार अङ्ग एक समूहमें आते हैं और अन्त के छै अङ्ग एक समूहमें आते हैं । किन्तु पाँचवाँ अङ्ग इन सबसे भिन्न प्रतीत होता है। प्रथम श्रुत स्कन्ध के १६ अध्ययनोंके नामादि इस प्रकार हैं
१ उक्खित० ( उत्तिप्त )-श्रेणिक पुत्र मेघकुमार की कथा है। वह पूर्व भवमें हाथी था। एक खरगोश को बचानेके लिये उसने अपना पैर उत्तिप्त किया। इससे इस अध्ययन का नाम उत्क्षिप्त है। २ संघाडग० ( संघाटक )-एक दूसरेसे संबद्ध सेठ और चोर
की कथा है। ३ अंडग० ( अंडक )-मोरके अडे की कथा ४ कुम्म० (कूर्म )-कछवे की कथा ५ सेलय० (शैलक )-शैलक की कथा ६ तुम्ब० (तुम्ब ) ७ रोहिणि
सेठ की बधू रोहिणी की कथा ८ मल्ली०
-१६ वे स्त्रीतीर्थङ्कर मल्लिकी कथा हमायन्दी -माकन्दी नामक वणिक पुत्र की कथा १० चंदिमा० (चन्द्रमा) - १. दावद्दव० -इस नाम के समुद्र तट पर स्थित वृक्ष
की कथा १२ उद्दग० (उदक - २३ मंडुक्क० (मंडूक)-नन्द का जीव मेण्डक की कथा १४ तेतली
-तेतली पुत्र नामक अमात्यकी कथा
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