Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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जै० सा० इ० पूर्व पीठिका
वर्ग - इसमें रत्नावली, मुक्तावली आदि दस तपोंका वर्णन है । इन तपों को राजा श्रेणिक की दस भार्या ने किया था ।
अनुत्तरोपपाददश - उपपाद जन्मही जिनका प्रयोजन है उन्हें औपपादिक कहते हैं। विजय, वैजयन्त, जयन्त अपराजित और सर्वार्थसिद्धि ये पांच अनुत्तर विमान हैं । जो उपपाद जन्म से अनुत्तरों में उत्पन्न होते हैं उन्हें अनुत्तरोपपादिक कहते हैं। ऋषिदास, धन्य, सुनक्षत्र, कार्तिकेय, श्रानन्द, नन्दन, शालिभद्र, अभय, वारिषेण और चिलातपुत्र ये दस अनुत्तरोपपादिक वर्धमान तीर्थङ्करके तीर्थमें हुए । इसी तरह ऋषभ आदि तेईस तीर्थङ्करों के तीर्थमें अन्य दस दस अनगार दारुणः उपसर्गों को जीतकर विजयादि अनुत्तरों में उत्पन्न हुए । इस तरह अनुत्तरोंमें उत्पन्न होने वाले दस साधुओं का जिसमें वर्णन हो उसे अनुत्तरोपादिकदश नामक श्रंग कहते हैं । ( त० वा०, पृ० ७३ । षट्खं; पृ. १०३ । क. पा० पृ० १३० ) । अनुत्तरोपपातिक साधुओंके नगर उद्यान, चैत्य, वनखण्ड, माता पिता समवसरण धर्माचार्य आदि पूर्वोक्त बीस बातों का कथन करता है (नन्दी० सू० ५४ । समवा० सू० १४४ ) ।
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'अभयदेव के अनुसार 'अनुत्तर अर्थात् प्रधान और उपपात अर्थात् जन्म प्रधान जन्म वाले व्यक्तियोंसे सम्बद्ध दस अध्ययन जिसमें हों उसे अनुत्तरोपपादिक दशा कहते
१ - ' नास्मदुत्तरो विद्यते इत्यनुत्तर उपपतनमुपपातो जन्म इत्यर्थः । श्रनुत्तरः प्रधानः संसारे श्रन्यस्य तथाविधस्याभावात् उपपातो येषां ते तथा त एवानुत्तरोपपातिकाः, तद्वक्तव्यता प्रतिबद्धा दश-दशाध्ययनोपलक्षिता अनुत्तरोपपातिकदशा ।'- सम० टी०, सू० १४४ ।
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