Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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जै० सा० इ० पूर्व पीठिका
नहीं चाहिये कि जिस ग्रन्थ से जो उद्धरण लिये गये हैं वे उसमें हैं या नहीं ? रायपसेणीसे जो उद्धरण लिये गये हैं वह उसमें पाये जाते हैं । (इं० ए०, जि० १६, पृ० ६३ ) । अस्तु,
ग्रन्थ का आरम्भ पञ्च नमस्कार मंत्र से होता है । उसमें 'नमो बम्हीए लिवीए' पद और जुड़ा हुआ है। उसके पश्चात् आरम्भिक पद्य है फिर 'तेणं कालेां तेण समएण' आदि आना है । ग्रन्थ का प्रारम्भिक कुछ भाग प्रश्नोत्तर के रूपमें है जिसमें भगवान महावीर अपने प्रधान शिष्य इन्द्रभूति गौतम के प्रश्नों का उत्तर देते हैं और कुछ भाग ऐतिहासिक संवाद के रूप में है। इस भागमें भगवान महावीर के पूर्वकालीन तथा समकालीन व्यक्तियों का विवरण उपलब्ध होता है। भगवान महावीर के शिष्यों में इन्द्रभूति, अग्निभूति, और वायुभूतिका नाम तो है किन्तु सुधर्मा का नाम इसमें नहीं आया । नौवें शतकमें जमालिका वर्णन है जो महावीर का शिष्य था । किन्तु निन्हवका जनक था । १५ वें शतक में अजीविक सम्प्रदाय के संस्थापक मक्खलिपुत्र गोशालक का वृतान्त बहुत ही महत्त्वपूर्ण है । इस शतक के विषय में डा० विन्टर नीट्स का कहना है कि यह एक स्वतंत्र ग्रन्थ रहा होगा जो भगवती में जोड़ दिया गया ।
इस अङ्ग में यद्यपि भगवान पार्श्वनाथका वर्णन नहीं है किन्तु उनकी परम्परा के अनुयायी अनेक पार्श्वापत्यीयोंका वर्णन हैं उनमें कालासवेसियपुत्त आदि नाम उल्लेखनीय हैं । पार्श्व के अनेक अनुयायी महावीरके अनुयायी बने ऐसे भी अनेक उल्लेख इस श्रङ्गमें मिलते हैं ।
इनके सिवाय भी यत्र तत्र कुछ ऐतिहासिक उल्ल ेख मिलते हैं । यथा चम्पाके राजा कुणिक के समय में काशी कोसल के नौ
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