Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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श्रुतपरिचय कथनका समर्थन किया जा सकता है। अस्तु, अब हम प्रत्येक अंगका विषय परिचय देकर उसके साथ श्वेताम्बरीय ग्यारह अंगोंका भी क्रमशः यथा संभव समीक्षापूर्वक परिचय करायेंगे।
१ आचारांग-आठशुद्धि, तीनगुप्ति, पाँच समिति रूप चर्या का कथन करता है ( त० वा०, पृ० ७२ )। मुनिको कैसे चलना चाहिये, कैसे खड़ा होना चाहिये, कैसे बैठना चाहिये, कैसे सोना चाहिये, कैसे भोजन करना चाहिये और कैसे बोलना चाहिये, इत्यादिका कथन करता है (षटखं० पु. १, पृ० ६६ । क० पा०, भा० १ पृ० १२२)। इसमें अट्ठारह हजार पद थे। ___ वर्तमान श्वे० आचारांग सूत्रमें भिक्षुओंकी चर्या बतलाई है। इसमें दो श्रुत स्कन्ध हैं। प्रथम श्रु तस्कन्ध 'बम्भचेरिय'में आठ अध्ययन हैं- १ सत्थ परिण्णा, २ लोग विजओ, ३ सीओसणिज, (शीतोष्णीय , ४ सम्मत्त, ५ आवंती अथवा लोगसार, ६ धूय, ७ विमोह, ८ उवहाण सुय । नौवां महापरिण्णा नष्ठ हो गया। इससे वज्र स्वामी ने श्राकाश गामिनी विद्याका उद्धार किया था। शीलांकाचार्यके मतसे महापरिगणा आठवां अध्ययन था, विमोक्षाध्ययन सातवां और 'उवहाण सुय' नौवां । ऐसा वि० प्र० (पृ० ५१ ) में लिखा है। किन्तु यह ठीक नहीं है। आचारांग' नियुक्तिमें महापरिगणाका नम्बर ७वां है।
१--सत्थ परिण्णा लोगविजत्रो य सीअोसणिज सम्मत्तं। तह लोगसारनामं धुयं तह महापरिगणा य ।।३१।। अट्ठमए य विमोक्खो उवहाणसुयं च नवमंग भणियं । इच्चेसो अायारो अायारग्गाणि सेसाणि ।।३२ ॥–श्राचा० नि० ।
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