Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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श्रुतपरिचय
६४३ ३ आहार परिन्ना (आहार परिज्ञा )-शुद्ध एषणीय आहार सम्बन्धी वर्णन है।
४ पञ्चक्खान किरिय (प्रत्याख्यान क्रिया)-जिसने प्राणियों के घातका प्रत्याख्यान नहीं किया है वह उनका घात न करनेपर भी उनका हिंसक कैसे हो सकता है ? इस प्रश्नका समाधान दृष्टान्त देकर किया है।
५ अणगारं-अनयार सुतं ( अनाचारथ तं )-इसमें आचार को स्वीकार करने और अनाचारको त्यागनेका विधान है । यह अध्ययन ३४ पद्योंमें है।
६ अदइज्जं (आद्रकीयं )-इसमें आद्रक कुमारका गोशाल आदि अन्य तीर्थयोंके साथ शास्त्रार्थका विवेचन है । इसमें ५५ पद्य हैं । अन्तिम पद्य 'बुद्धस्स आणाए' आदिमें वीर का निर्देश 'बुद्ध' शब्दसे किया गया है । __७ नालंद इज्ज (नालन्दीयं)--यह गद्य में है। इसमें बतलाया है कि नालन्दामें लेप गाथापतिके बगीचे में ठहरे हुए भगवान गौतमके पास उदक पेढालपुत्र आता है और उनसे वाद पूर्वक प्रश्न करता है । गौतम स्वामी उसको अनेक रीतिसे उत्तर देते हैं। यह उदक पार्श्वनाथकी परम्पराका था। गौतमके उत्तरोंसे सन्तुष्ट होकर वह चतुर्याम धर्मको छोड़कर सप्रतिक्रमण पञ्च महाव्रत रूप धर्मको स्वीकार कर लेता है ।
इस तरह सूत्र कृतांगमें साधुओंकी धार्मिक चर्याका वर्णन है तथा अन्य तीर्थकोंके मतोंका खण्डन है । अकलंक देव ने जो
१-प्रथम पद्य इस प्रकार है-'श्रादाय वंभचेरं च प्रासुपन्न इमं वई। अस्सि धम्मे अणायारं नायरेज कयाइवि ॥१॥
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