Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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श्रुतपरिचय
६३३ सम० अभ० सू० १४७ )। इसमें दस वस्तु, दो सौ पाहुड़ और साढ़े बारह करोड़ पद हैं। ___ इस तरह चौदह पूर्वो में १६५ वस्तु और तीन हजार नौ सौ पाहुड़ होते हैं।
उक्त विषय परिचयसे ज्ञात होता है कि पूर्वोमें आत्मा, कर्म, ज्ञान, त्याग आदिके साथही साथ मंत्र तंत्र ज्योतिष गणित
आयुर्वेद, कला आदिका भी वर्णन था। तथा दार्शनिक मतों की प्रक्रिया भी उसमें बतलाई गई थी। इसीसे पूर्वोका प्रतिपाद्य विषय स्वसमय और पर समय दोनों कहा है। अर्थात् उसमें स्वमतके साथ परमतोंके सिद्धान्तोंका भी प्रतिपादन था । इसीसे बारहवें अंग का नाम दृष्टिवाद था ।
चौदह पूर्वोका यह विषय परिचय उपलब्ध दिगम्बर साहित्य में सर्वप्रथम अकलंक देवके तत्त्वार्थ वार्तिकमें ही उपलब्ध होता है। उन्होने किस आधारसे यह लिया यह कह सकना शक्य नहीं है। श्वेताम्बरोंमें नन्दि चूर्णिमें मिलता है, वहींसे हरिभद्र, अभयदेव. मलयगिरि आदि टीकाकारोंने लिया है। उसके अवलोकनसे पूर्वो की विषयसम्बन्धी विविधता तथा गहनताका आभास मिलता है। तथा यह भी प्रकट होता है कि उनका परिमाण बहुत विशाल होना चाहिये। यद्यपि प्रत्येक पूर्वके वस्तु और पाहुड़ नामक अधिकारोंकी जो संख्या दी है वह उचित ही प्रतीत होती है किन्तु पदोंका जो प्रमाण दिया है वह अवश्यही विस्मय कारक है। किन्तु दिगम्बर-श्वेताम्बर दोनों परम्पराओंके साहित्यमें पदों का प्रमाण प्रायः एकसा ही मिलता है ।
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