Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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श्रुत ज्ञान होता है । आशय यह है कि अनुयोग द्वार के जितने धिकार होते हैं उनमें से एक अधिकार की प्रतिपत्ति संज्ञा है । और एक अक्षर से न्यून सब अधिकारों की प्रतिपत्ति समास संज्ञा है । इसी तरह प्रतिपत्ति के जितने अधिकार होते हैं उनमें से एक एक अधिकार की संघात संज्ञा है और एक अक्षरसे न्यून सब अधिकारों की संघात समास संज्ञा है ।
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अनुयोगद्वार श्रुतज्ञान के ऊपर एक अक्षर की वृद्धि होने पर अनुयोग द्वार समास नामक श्रुतज्ञान होता है । इस प्रकार एक एक अक्षर की वृद्धि होते होते एक अक्षर से न्यून प्राभृत प्राभृतश्रुत ज्ञान के प्राप्त होने तक अनुयोग द्वार समास श्र श्रुत ज्ञान होता है । उसके ऊपर एक अक्षर की वृद्धि होने पर प्राभृत प्राभृतश्रुत ज्ञान होता है ।
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प्राभृत प्राभृत श्रुतज्ञानके ऊपर एक अक्षर की वृद्धि होने पर प्राभृत-प्राभृत समास श्रुतज्ञान होता । इस प्रकार उत्तरोत्तर एक एक अन्तर की वृद्धि होते होते एक अक्षरसे न्यून प्राभृत श्रुतज्ञानके प्राप्त होने तक प्राभृत प्राभृत समास श्रुतज्ञान होता उसके ऊपर एक अक्षर की वृद्धि होनेपर प्राभृत श्रुतज्ञान होता है । सारांश यह कि एक प्राभृत में संख्यात अधिकार होते हैं । उनमें से एक एक अधिकार की प्राभृत प्राभृत संज्ञा है और प्राभृत प्राभृतके अधिकारोंमेंसे प्रत्येक अधिकारकी अनुयोगद्वार संज्ञा है ।
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प्राभृत श्रुतज्ञानके ऊपर एक अक्षर की वृद्धि होनेपर प्राभृत समास श्रुतज्ञान होता है । इस प्रकार उत्तरोत्तर एक एक अक्षरकी वृद्धि होते होते एक अक्षरसे यून वस्तु श्रुतज्ञान के प्राप्त होने तक प्राभृत समास श्रुतज्ञान होता है । उसमें एक अक्षर की
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