Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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जै० सा० इ० पूर्व पीठिका ज्ञानवाद और वैनयिक वादियों के तीन सौ त्रेसठ मतों का पूर्व पक्ष रूप से वर्णन करता है। तथा उसमें त्रैराशिकवाद, नियतिवाद, विज्ञानवाद, शब्दवाद, प्रधानवाद, द्रव्यवाद और पुरुषवाद का वर्णन भी है।
३ प्रथमानुयोग 'प्रथमानुयोग पांच हजार पदोंके द्वारा चौबीस तीर्थङ्कर, बारह चक्रवर्ती, नौ बलभद्र, नौ नारायण, और नौ प्रति नारायणोंके पुराणों का तथा जिन, विद्याधर, चक्रवर्ती, चारण मुनि और राजा आदिके वंशों का वर्णन करता है।
५ चूलिका दृष्टिवादके पाँचवे भेद चूलिकाके पाँचभेद हैं-जलगता, थलगता, मायागता,रूपगताऔर आकाशगता। जलगता चूलिका दो करोड़,
१ क. पा. भा. १, पृ. १३८ । षट्खं; पु० १, पृ. ११२ । नन्दी० टी.-तीर्थङ्करोंके पूर्व भवों का तथा कल्याणकोंका वर्णन रहता है।
२ षट्खं०, पु० १, पृ. ११३ । क. पा०, भा० १, पृ.१३६ । श्वेताम्बरीय साहित्यमें लिखा है कि चूलिका चोटीको कहते हैं। जैसे मेरू की चूलिका है वैसे ही दृष्टिवादकी चूलिका है । परिकर्म, सूत्र, पूर्वगत और अनुयोगमें जो उक्त अनुक्त अर्थ होते हैं उन सब का संग्रह चूलिकाओं में होता है। चूलिका श्रादिके चार पूर्वो की हैं शेष पूर्वोकी चूलिका नहीं हैं। प्रथम पूर्वकी चूलिकाओंका प्रमाण चार, दूसरे पूर्वकी चूलिकाओंका प्रमाण बारह, तीसरे पूर्वकी चूलिकाका प्रमाण अाठ और चौथे पूर्वकी चूलिकात्रोंका प्रमाण दस है। इस तरह सब चौतीस चूलिकाएं हैं ।-नन्दी० टी०, सू० ५७ । पृ. २४६ ।
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