Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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श्रुतपरिचय पूर्वो के पदों के प्रमाण में तो दोनों परम्पराओं में विशेष अन्तर नहीं है किन्तु अंगों के पदों के प्रमाण को लेकर दोनों परम्पराओं में बहुत अन्तर है । श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार पहले आचारांग में अट्ठारह हजार पद थे, और आगे प्रत्येक अंग में क्रम से दूने दुने पद थे। किन्तु दिगम्बर परम्परा के अनुसार द्वादशांग के पदों का प्रमाण नीचे लिखे अनुसार था। उसके सामने वाली संख्या श्वेताम्बर मान्यता के अनुसार है,
१८००० २६०००
७२०००
१-आचाराङ्ग १८००० २- सूत्रकृताङ्ग ३६००० ३-स्थानाङ्ग
४२०८० ४-समवाय १६४००० ५-वियाहपएणति २२८००० ६-णाह धम्मकहा ५५६००० ७-उपासकाध्ययन ११७०८०० ८--अन्तकृद्दशा २३२८००० ६-अनुत्तरोपपादिक ६२४४००० १०-प्रश्न व्याकरण ९३१६००० ११-विपाकसूत्र १८४०००००
१४४००० २८८००० ५७६००० १५५२००० २३०४००० ४६०८००० ६२१६००० १८४३२०००
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ग्यारह अंगों के पदों का जोड़ ४१५०२००० ३६८०६०००
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