Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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६२०
यही
यही
जै० सा० इ० पू०-पीठिका
चौदह पूर्वो के पदोंका प्रमाण दि०१
श्वे०२ १-उत्पाद
१००००००० २-अग्रायणी
६६००००० ३-वीर्य प्रवाद ७०००००० ४-अस्ति नास्ति प्र० ६०००००० ५ ज्ञान प्रवाद ६-सत्य प्रवाद १००००००६ ७-आत्मप्रवाद २६००००००० ८-कर्म प्रवाद १८०००००० ह-प्रत्याख्यान
८४००००० १०-विद्यानुवाद ५१-कल्याण
२६००००००० १२-प्राणावाय १३००००००० १३-क्रिया विशाल ६००००००० १४-लोक विन्दुसार १२५००००००
यही
यही
१५६०००००
यही १२५००००
६५५०००००५ अंगोंके पदोंके प्रमाणकी उपपत्ति दिगम्बर साहित्य में बारह अंगों के पदों का जोड़ एक सौ
१-षटखं, पु. १, पृ. ११४-१२२ तथा क. पा०, भा. १ पृ० ६५-६६ । २-स. च. क., पृ. १७-१८ । नन्दी और समवायांग वृति में उत्पाद पूर्व में एक करोड़ पद बतलाये हैं अन्यत्र ग्यारह करोड़ बतलाये हैं। -प्रव. सारो०,६२ द्वा०।।
३- "बारुतर सय कोडी तेसीदि तह य होति लक्खाणं । अट्ठावएण सहस्सा पंचेव पदाणि अंगाणं "॥-गो० जी० ।
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