Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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जै० सा० इ० - पूर्व पीठिका
है। एक मोग्गलायन बुद्धदेव के शिष्य भी थे। नहीं कह सकते कि अलङ्कदेव के द्वारा निर्दिष्ट क्रियावादी मौद्गल्यायन इनमें से कौन हैं ?
उल्लिखित व्यक्तियों के उक्त अनुमानिक परिचय से प्रतीत होता है कि अकलंक देव ने कतिपय वैदिक ऋषियों को क्रियावादी और सांख्य दर्शनके प्रर्वतकोंको अक्रियावादी कहा है । वैदिक ऋषि क्रियाकाण्डी थे अतः उन्हें क्रियावादी मानना उचित है और सांख्य दर्शन में आत्मा को अकर्ता माना गया है। अतः उसके पुरस्कर्ताओं को अक्रियावादी कहना भी उचित ही है । किन्तु सिद्धसेनने सांख्यवादियोंको क्रियावादी और क्रियाकाण्ड वैदिकको अक्रियावादी किस दृष्टि से बतलाया है यह हम नहीं कह सकते । अस्तु,
साकल्य, वाल्कल, कुथुमि, सत्यमुग्रि, कठ, माध्यंदिन, मौद, पैप्पलाद, बादरायण, अम्बष्ठ, वसु, जैमिनिको अकलंकने ज्ञानवादी कहा है ।
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साकल्य - पाणिनिने अष्टाध्यायी में शाकल्यका उल्लेख किया है । शाकल्य ने ऋग्वेद का पदपाठ स्थिर किया । पद पाठ में जो इति का प्रयोग है उसे पाणिनीने शाकल्य कृत अनार्ष इति कहा है (१-१-१६) । ( पा० भा० पृ०, ३३३ ) | महाराज जनक की सभा में याज्ञवल्क्य का ऋषियों के साथ जो महान् संवाद हुआ था उसका वर्णन शतपथ काण्ड ११ - १४ में है । ऋषियों में एक विदग्ध शाकल्य था । याज्ञवल्क्य का उत्तर न देने से उसका मस्तक गिर गया । यह शाकल्य ऋग्वेद का प्रसिद्ध आचार्य हुआ। है । यही पदकारों में सर्व श्रेष्ठ था । इसका पूरा नाम देव मित्र शाकल्य था । ( वै० वा० इ०, भा० २, पृ० ७६ ) ।
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