Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
View full book text
________________
श्रुतपरिचय
६०५ वशिष्ठ--वशिष्ठ नामके भी अनेक व्यक्ति पाये जाते हैं। एक तो वह वशिष्ठ है, जिनको गणना' दस महषियों में की गई है। एक वशिष्ठ योगवाशिष्ठ रामायण के रचयिता हुए हैं। एक वशिष्ठ धर्म सूत्र के रचयिता हुए हैं। इनमें से किन वशिष्ठ का ग्रहण निर्देश अकलंक देवको अभिप्रेत है यह निर्णय कर सकना दुःशक्य है। तथापि आगे के नामों को देखते हुए वैदिक ऋषि वशिष्ठ का ही ग्रहण इष्ट प्रतीत होता है। इन्होंने अथर्व वेद के मंत्रोंका उद्धार किया था।
पाराशर-वासिष्ठ कुल में सात ब्रह्मवादी हुए हैं। इनमें प्रथम वशिष्ठ थे और दूसरे थे पराशर । इसी पराशर का पुत्र कृष्ण द्वैपायन व्यास था। इसीसे उसे पाराशर्य भी कहते थे। चूँकि व्यास का नाम आगे लिखा है अतः वसिष्ठ के पश्चात् 'पराशर' नाम ही उचित प्रतीत होता है । सिद्ध सेन गणि की टीका में पाराशर' नाम पाया जाता है । ___ जनुकर्णि ( जातुकर्ण्य )-पुराणों में लिखा है कि वाष्कलने चार संहिताएं बनाकर अपने चार शिष्योंको पढ़ाई । उनके नाम थे-बौद्धय, अग्निमाठर, पराशर और जातुकयं । श्री मद्भागवतके
१-'भृगुर्मरीचिरत्रिश्च ह्यङ्गिराः पुलहः क्रतुः। मनुर्दक्षो वसिष्ठश्च पुलस्त्यश्चेति ते दश ॥६६॥ ब्रह्मणो मनसा ह्यते उद्भ ताः स्वयमीश्वराः। परत्वेनर्षयो यस्मात् स्मृता स्तस्मान्महर्षयः ॥६७॥ -ब्रह्माण्डपु०, -२-३२-६२।
२-किरात १०-१० की टीका में मलिनाथ लिखते हैं-'अथर्वणस्त मंत्रोद्धारो वशिष्ठकृत इत्यागमः ।'
३-'बौध्यं तु प्रथमां शाखां द्वितीयमग्नि माठरम् । पराशरं तृतीयां तु जातुकर्ण्यमथापरम् ।' -वै० वा० इ०, भा० १, पृ० ६३ ।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org