Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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ज० सा० इ०-पूर्व पीठिका
कि इस इन्दु प्रमति का पुत्र वसु और वसुका पुत्र उपमन्यु था। सम्भवतया इन दोनोंमें से ही किसी एक वसुका निर्देश अकलंकदेवने किया है। ___ जैमिनि-ऐसा प्रतीत होता है कि जैमिनि नामके अनेक विद्वान् हुए हैं। एक जैमिनि व्यास' ऋषिका शिष्य था । महाभारत सभापर्व (४-१७ ) से ज्ञात होता है कि युधिष्ठिरके सभाप्रवेशके समय जैमिनि उपस्थित था । उधर आदिपर्वमें लिखार है कि महाराज जनमेजयके नागयज्ञमें जैमिनि उद्गाता का कार्य करता था । साम संहिताकारोंके लांगल समूहमें भी एक जैमिनि का नाम आता है। सामवेदाचार्य जैमिनि और उनके शिष्य तलवकारने जैमिनि ब्राह्मणका संकलन किया था । इसे ही सामवेद को जैमिनीय संहिता का प्रवक्ता कहा जाता है। एक जैमिनि मीमांसा शास्त्रके रचयिता भी हुए हैं । वेदान्तसूत्रों में उनका उल्लेख है। ____ उक्त वैदिक ऋषियों और आर्योंको अकलंक देवने अज्ञानवादी कहा है।
अकलंक देव ने वशिष्ठ, पाराशर जनुकणि, वाल्मीकि, रोमहर्षिणी, सत्यदत्त, व्यास, एलापुत्र, औपमन्यव, ऐन्द्रदत्त और अयस्थूणको वैनयिक दृष्टि कहा है।
१-'ब्रह्मणो ब्राह्मणानां च तथानुगृहकाया । विव्यास वेदान् यस्मात् स तस्माद् व्यास इति स्मृतः ।।१३०।। वेदानध्यापयामास महाभारतपञ्चमान् । सुमतुंन जैमिनि पैलं शुकं चैव स्वमात्मजम् ।। १३१ ।।'-म० भा०, अादिपर्व, अ०६४ ।
२-'उद्गाता ब्राह्मणो वृद्धो विद्वान् कौत्सार्य जैमिनिः'-म० भा०, आदिपर्व, अ. ४८ ।
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