Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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जै० सा० इ०-पूर्व पीठिका मौदपप्पलादाः' उदाहरणोंके द्वारा इस बातका उल्लेख किया है (पा० भा०, पृ. २६४ )। पात० महा० (४-२-६६ ) में 'मौदाः' पैप्पलादाः प्रयोग भी मिलते हैं । अतः महाभाष्य कालमें ये शाखाएं बहुत प्रसिद्ध रहीं होंगी। अथर्व परिशिष्ट (२२-३ ) में मौदका मत दिया है।
स्कन्द पुराण (नगर खण्ड) के अनुसार पिप्पलाद सुप्रसिद्ध याज्ञवल्क्यका ही एक सम्बन्धी था। प्रश्न उपनिषद्के प्रारम्भमें लखा है कि भगवान पिएपलादके पास सुकेशा भारद्वाज आदि छः ऋषि गये थे। वह पिप्पलाद महाविद्वान और समर्थ पुरुष था। _ वादरायण-परम्परासे ब्रह्म सूत्रोंका रचयिता बादरायणको माना जाता है । मत्स्यपुराण ( १४-१६ ) में कहा है कि वेदव्यास का एक नाम बादरायण भी था। कृष्ण द्वैपायन व्यास पराशर ऋषिके पुत्र थे तथा महाभारतके रचयिता थे। जैमिनि सूत्रों ( १-१-५,५-२-१६ ) में भी बादरायणका निर्देश है। एक बादरायण 'स्मृतिकार भी हुए हैं। सूत्रकार बादरायणका निर्देश अकलङ्कदेवने किया हो, यह सम्भव प्रतीत होता है ।। ____ बादरायणके पश्चात् 'तत्वार्थवार्तिक में प्रदत्त दो नामोंको लेकर अनेक पाठान्तर मिलते हैं। यथा, 'अम्बष्टिकृदौ विकायन, अम्बष्ठिकृदैलिकायन, अम्बरीशस्विष्टिकृदैतिकायन'।
सिद्धसेन गणिकी त. भा० टीका (भा० २, पृ० १२३ ) में 'स्विष्टिकृद् अनिकात्यायन; मुद्रित है । तथा धवला टीका ( पु० १, पृ० १०८) में 'स्वष्टकृदैतिकायन' नाम दिये हैं। इनसे मिलते
१-हि० ध०, पृ. ७१४ । २-भा. ज्ञा. काशी संस्करण, पृ. ७४ ।
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