Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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श्रुतावतार
५२५. (बराहमिहिरने भी) नग्नताको जैनोंकी मुख्य विशेषता बतलाया है। और बौद्ध उल्लेखोंके अनुसार बुद्धने नग्नताका दृढ़तासे विरोध किया था। किन्तु आगमोंमें नग्नताकी स्थिति महत्वपूर्ण नहीं है। तथा कम से कम नग्नताको आवश्यक तो नहीं बतलाया है, जबकि दिगम्बर सम्प्रदाय उसे सिद्धान्तके रूपमें मानता है। श्वेताम्बरोंने (विशेषतया कल्पसूत्र में ) दिगम्बरोंके विरुद्ध जो घृणाभाव प्रदर्शित किया है, यदि उसे विचार कोटिमें लिया जाये तो यह निर्णय करना अदूरदर्शितापूर्ण न होगा कि इस विषयमें सम्बद्ध अनेक प्राचीन परम्पराओं को श्वेताम्बरीय आगमोंसे हटा दिया गया। तथापि श्वेताम्बर भी इससे इन्कार नहीं करते कि जिन स्वयं नग्न रहते थे। किन्तु वे दृढ़ता पूर्वक यह भी कहते हैं कि जो चीज उस समयके लिये उचित थी, वह वर्तमान समयके लिए उचित नहीं है।' ___ जैन परम्परामें दिगम्बर और श्वेताम्बरको तरह एक यापनीय संघ भी था। यह संघ यद्यपि नग्नताका पक्षपाती था तथापि श्वेताम्बरीय आगमोंको मानता था। इस संघके एक
आचार्य अपराजित सूरिकी संस्कृतटीका भगवती आराधना नामक प्राचीन ग्रन्थपर है, जो मुद्रित हो चुकी है। उसमें नग्नताके समर्थनमें श्री अपराजित सूरिने आगम ग्रन्थोंसे अनेक उद्धरण दिये हैं जिनमें से अनेक उद्धरण वर्तमान आगमोंमें नहीं मिलते । यहाँ दो एक उद्धरण दिये जाते हैं
१-'देशविसंवादिनो द्रव्यलिङ्गेनामेदिनो निन्हवाः। बोटिकास्तु सर्वविसंवादिनो द्रव्यलिङ्गितोऽपि भिन्नाः॥"
-श्राव० टी०, मलय।
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