Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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ज० सा० इ० पू -पीठिका
बौद्ध निकायमें बासठ मत दीर्घ निकायके ब्रह्म जाल सुत्तमें बासठ मतोंका निर्देश किया है। उन्हें भी यहां देदेना उचित होगा ।
१-नित्यवाद-'भिक्षुओं ! कितनेही श्रमण और ब्राह्मण नित्यवादी हैं वे चार कारणोंसे आत्मा और लोक दोनोंको नित्य मानते हैं। ___२-नित्यता-अनित्यतावाद-भितुओं ! कितने श्रमण और ब्राह्मण हैं वे चार कारणों से आत्मा और लोकको अंशतः नित्य और अंशतः अनित्य मानते हैं ।
३-सान्त अनन्तवाद--भिक्षुओं ! कितने श्रमण ब्राह्मण हैं. जो चार कारणोंसे लोकको सान्त और अनन्त मानते हैं ।
४-अमराविक्षेपवाद--भिक्षुओं! कोई श्रमण या ब्राह्मण ठीकसे नहीं जानता कि यह अच्छा या बुरा । अतः वह असत्य भाषणके भय और घृणासे न यह कहता है कि यह अच्छा है
और न यह कहता है कि बुरा है । ऐसा वह चार कारणोंसे करता है।
५-अकारणवाद-भिक्षुओं ! कितने श्रमण और ब्राह्मण अकारणवादी हैं। दो कारणों से आत्मा और लोकको अकारण उत्पन्न मानते हैं।
६-मरणान्तर होशवाला आत्मा-भिन्नुओं ! कितने श्रमण और ब्राह्मण मरनेके बाद आत्मा असंज्ञी रहता है ऐसा मानते हैं। ऐसा वे सोलह कारणोंसे मानते हैं। ____-मरणान्तर बेहोश आत्मा-भिक्षुओं ! कितने श्रमण
और ब्राह्मण आठ कारणोंसे मरनेके बाद आत्मा असंज्ञी रहता है, ऐसा मानते हैं ।
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