Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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जै० सा० इ०-पूर्व पीठिका में काण्ठेविद्धि आचार्यका नाम आता है । सामवेदके वंश ब्राह्मणमें यह नाम आया है जिससे सूचित होता है कि यह सामवेदके आचार्य थे। ( पा० भा०, पृ० ३२१ )। ____ कौशिक-पाणिनि व्याकरण ४-१-१०४ सूत्रके महाभाष्यमें लिखा है-विश्वामित्रने तप तपा मैं अनृषि न रहुँ। वह ऋषि हो गया। पुनः उसने तप तपा-मैं अन्टषिका पुत्र न रहूं। तब गाधि भी ऋषि हो गया। उसने पुनः तप तपा-मैं अनृषिका पौत्र न रहूं। तब कुशिक भी ऋषि हो गया। अतः कुशिकका पौत्र होनेसे विश्वामित्र कौशिक थे । ऋग्वेदमें जिन सात ऋषियों के नाम आये हैं उनमें एक विश्वामित्र भी हैं । अथर्ववेदमें भी विश्वामित्र नाम आता है। कौशिक नामक एक ऋषि अथर्वसूत्रोंके व्याख्याकार भी हुए हैं। कौशिक गृह्यसूत्र और कौशिक स्मृति नामक दो ग्रन्थ भी हैं महाभारतमें धर्मव्याध ने एक कौशिक नामके ब्राह्मणको उपदेश दिया है। हमें यहां कौशिकसे वैदिक ऋषि विश्वामित्र हो अभिप्रेत प्रतीत होते हैं।
माञ्छपिक-धवला टीका (पु० १, पृ० १०७ ) में मांधपिक नाम है और सिद्धसेन गणिकी टीकामें (त० भा० टी० भा०, पृ० ६१) मांधनिक नाम छपा है। उसके सम्पादक ने अपनी प्रस्तावना (पृ०५६ ) में लिखा है कि डा० SCHRA DER 'मान्थनिक' नाम बतलाते हैं। किन्तु वह पता नहीं बतलाते कि वह कौन थे। सम्पादक श्री कापड़ियाका कहना है कि 'यदि यह नाम ठीक है तो वह मन्थ सिद्धान्तका संस्थापक हो सकता है। वृहदारण्यक ( ३-७-१, ६-३-१) में इस मन्थ सिद्धान्तका निर्देश है । कहा जाता है कि श्वेतकेतुका पिता उद्दालक उसका मूल रचायिता था। श्री भगवदत्तने अपने वैदिक वाङ्मयके इतिहासमें ( भा० २, पृ० ५५) उद्दालक आरुणिकी परम्परा दी
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