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________________ ५९२ ज० सा० इ० पू -पीठिका बौद्ध निकायमें बासठ मत दीर्घ निकायके ब्रह्म जाल सुत्तमें बासठ मतोंका निर्देश किया है। उन्हें भी यहां देदेना उचित होगा । १-नित्यवाद-'भिक्षुओं ! कितनेही श्रमण और ब्राह्मण नित्यवादी हैं वे चार कारणोंसे आत्मा और लोक दोनोंको नित्य मानते हैं। ___२-नित्यता-अनित्यतावाद-भितुओं ! कितने श्रमण और ब्राह्मण हैं वे चार कारणों से आत्मा और लोकको अंशतः नित्य और अंशतः अनित्य मानते हैं । ३-सान्त अनन्तवाद--भिक्षुओं ! कितने श्रमण ब्राह्मण हैं. जो चार कारणोंसे लोकको सान्त और अनन्त मानते हैं । ४-अमराविक्षेपवाद--भिक्षुओं! कोई श्रमण या ब्राह्मण ठीकसे नहीं जानता कि यह अच्छा या बुरा । अतः वह असत्य भाषणके भय और घृणासे न यह कहता है कि यह अच्छा है और न यह कहता है कि बुरा है । ऐसा वह चार कारणोंसे करता है। ५-अकारणवाद-भिक्षुओं ! कितने श्रमण और ब्राह्मण अकारणवादी हैं। दो कारणों से आत्मा और लोकको अकारण उत्पन्न मानते हैं। ६-मरणान्तर होशवाला आत्मा-भिन्नुओं ! कितने श्रमण और ब्राह्मण मरनेके बाद आत्मा असंज्ञी रहता है ऐसा मानते हैं। ऐसा वे सोलह कारणोंसे मानते हैं। ____-मरणान्तर बेहोश आत्मा-भिक्षुओं ! कितने श्रमण और ब्राह्मण आठ कारणोंसे मरनेके बाद आत्मा असंज्ञी रहता है, ऐसा मानते हैं । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003837
Book TitleJain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages778
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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