SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 616
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रुतपरिचय ५६१ होता है इस लिये अज्ञान ही श्रेयश्कर है। जीवादि नौ पदार्थों के साथ अस्ति आदि सात भंगोंकी योजना करनेसे त्रेसठ भेद होते हैं । तथा एक शुद्ध पदार्थको अस्ति. नास्ति, अस्तिनास्ति, श्रवक्तव्य इन चार भंगोंके साथ मिलानेसे चार भेद और होते हैं । इस तरह अज्ञान वादियोंके सड़सठ भेद होते हैं। श्वेताम्बर टीका ग्रन्थों में जीवादी नौ पदार्थों को अस्ति श्रादि सात भंगोंके साथ लगानेसे त्रेसठ, और उत्पत्तिको प्रारम्भके अस्ति श्रादि चार भंगोंके साथ लगानेस चार इस प्रकार सड़सठ भेद कहे है। जो सब देवताओंको और सब धर्मोको समान रूपसे देखते हैं वे वैनयिक कहे जाते हैं। अथवा जो विनयको ही स्वर्गादि का कारण मानते हैं वे वैनयिक हैं । देव, राजा, ज्ञानी, यति, वृद्ध, बाल, माता और पिता इन आठोंकी मन, वचन, काय और दानके साथ विनय करनेसे वैनयिकोंके बत्तीस भेद होते हैं। इस प्रकार कुल तीन सौ वेसठ मत बतलाये हैं। ७-'को जाणइ णवभावे सत्तमसत्तं दयं अवचमिदि । अवयणजुद सत्ततयं इति भंगा होति तेसट्ठी ।।८८६।। को जाणइ सत्तचउ भावं सुद्धं खु दोरिण पंतिभवा । चत्तारि होति एवं, अण्णाणीणं तु सत्तट्ठी।।८८७।। -गो. क. १-'सर्वदेवतानां सर्वसमयानां च समदर्शनं वैनयिकम्”-सर्वार्थ. ८-१। 'विनयेन चरति स वा प्रयोजन एषामिति वैनयिकाः। ते च वादिनश्चेति वैनयिकवादिनः । विनय एव वा वैनयिक, तदेव ये स्वर्गादिहेतुतया वदन्त्येवंशीलाश्च ते वैनयिकवादिनः।-भग० अभ० टी, ३०१। स्था० अ०टी०, ४-४४-३४५। 'विनयादेव मोक्ष इत्येवं गोशालक मतानुसारिणो विनयेन चरन्तीति वैनयिका व्यवस्थिताः'-सूत्र • शी०, टी० १-६-२७ २-'मणवयणकायदाणगविभवो सुर-णिवइ-णाणि-जदि-बुड्ढे । बाले मादुपिदुम्मि य कायव्वो चेदि अचऊ' || ८८८ ।।-गो० क० । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003837
Book TitleJain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages778
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy