Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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जै० सा० इ० पू०-पीठिका दस पूर्वोका अध्ययन करनेके पश्चात् ध्यान समाप्त होनेसे भद्रवाहु स्वामी पाटली पुत्र आ गये। उनके साथ स्थूलभद्र भी आ गये। स्थूलभद्र की भगिनी अन्य आर्यिकाओंके साथ अपने भाईसे मिलने गई। किन्तु स्थूलभद्रके स्थान पर एक सिंहको बैठे देखकर डरकर भागीं। इस तरह दस पूर्वी होनेके पश्चात् स्थूलभद्र विद्याओंके प्रलोभनमें आ गये। जैसा कि ऊपर भिन्नदस पूर्वी के लिये कहा है। इसीसे भद्रबाहुने उन्हें शेष चार पूर्वांकी वाचना देना बन्द कर दिया। पोछे स्थूलभद्रके क्षमा मांगने पर वाचना दी।
__ पूर्व नाम क्यों ? - श्वेताम्बर साहित्यमें पूर्वोको पूर्व नाम देनेका कारण बतलाते हुए लिखा है कि सबसे प्रथम गणधर पूर्वोकी रचना करते हैं इसलिये उन्हें पूर्व कहते हैं। ऐसा भी उल्लेख मिलता है कि तीर्थङ्कर जब तीर्थ का प्रवर्तन करते हैं तो सबसे प्रथम पूर्व
१---'पूर्व पूर्वाण्येवोपनिबध्नाति गणधरः इत्यागमे श्रूयते, पूर्वकरणादेव चैतानि पूर्वाण्यभिधीयते ।'
___ --विशे. भा. गा. ५५१ की उत्थानिका ( टीका हेम.) 'समस्तश्रुतात् पूर्व करणात् पूर्वाणि ।' स्था. टीका, सूत्र २६३ ।
२----अथ किं तत् पूर्वगतम् ? उच्यते-यस्मात् तीर्थङ्कराः तीर्थप्रवतनाकाले गणधराणां सर्वश्रुतधारित्वेन पूर्वगतसूत्रार्थ भाषते, तस्मात् 'पूर्वाणि' इति भणितानि। गणधराः पुनः श्रुतरचनां विदधानाः श्राचारादिक्रमेण रचयन्ति स्थापयन्ति च-- 'सर्वाङ्गेभ्यः पूर्व तीर्थककरैरभिहितत्वात् पूर्वाणि'-अभि.चि.टी., २-१६० ।
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