Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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५८२ जै० सा० ई० पू०पीठिका ___ अनुयोग' द्वारमें परिमाण संख्याका कथन करते हुए लि वा है-परिमाणसंख्या दो प्रकारकी है-कालिक श्रुत परिमाणसंख्या और दृष्टिवाद श्रुत परिमाण संख्या । कालिक श्रुत परिमाण संख्या अनेक प्रकारकी है जो इस प्रकार है-पर्याय संख्या, अक्षर संख्या, संघात संख्या, पद संख्या, पादसंख्या, गाथासंख्या श्लोकसंख्या, वेष्टकसंख्या, नियुक्तिसंख्या, अनुयोग द्वारसंख्या, उद्देशकसंख्या, अध्ययनसंख्या, श्रुतस्कन्धसंख्या और अंगसंख्या। ये कालिकश्रुत परिमाणसंख्या है।
दृष्टिवाद श्रुत परिमाणसंख्या इस प्रकार है--पर्याय संख्यासे लेकर अनुयोग द्वार संख्या तक तो कालिक श्रुत के अनुसार ही है। आगे-पाहुड़ संख्या, पाहुडियासंख्या, पाहुडपाहुडियासंख्या और वस्तु संख्या । अर्थात् कालिक श्रुतमें उद्देश, अध्ययन, श्रुतस्कन्ध और अंगाधिकार होते हैं तब दृष्टिवादमें पाहुड, पाहुडिया पाहुड़ पाहुडिया और वस्तु नामक अधिकार होते हैं। नन्दीसूत्रमें जो बारह अंगोका विवरण दिया है उससे भी यहो प्रकट होता है कि दोनों के अधिकारों में मौलिक अन्तर था। १-से किं तं परिमाणसंखा ? दुविहा पण्णता, तं-कालिन सुयपरिमाणसंखा दिट्ठिवायसुअ परिमाणसंखा य । से किं तं कालिप्रसुत्र परिणामसंखा ? अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा- पजवसंखा, अक्खरसंखा अणुयोगदारसंखा उद्देसगसंखा अज्झयणसंखा सुअखंधसंखा अंगसंखा, से तं कालिअसुय परिमाणसंखा। से किं तं दिहिवायसुत्र परिमाणसंखा ? अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा-पजवसंखा जाव अणुयोगदारसंखा पाहुडसंखा पाहुणिप्रासंखा पाहुडपाहुडिआसंखा वत्थुसंखा, से तं दिहि वायसुत्र परिमाणसंखा से तं परिमाणसंखा, । अनु० पृ० २३३ ।
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