Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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श्रुतपरिचय
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पांच वर्षके दीक्षित निर्ग्रन्थ श्रमणको दसा-कल्प व्यवहार पढ़ाना उचित है । आठ वर्षके दीक्षित् निग्रंथ श्रमणको स्थानांग, समवायांग पढ़ाना उचित है। दस वर्षके दीक्षित श्रमणको व्याख्या प्रज्ञप्ति नामक अंग पढ़ाना उचित है। ग्यारह वर्ष के दीक्षित निग्रन्थ श्रमणको क्षुद्र विमान विभक्ति, महाविमान विभक्ति, अंगचूलिका, वंग (वर्ग) चूलिका, और विवाह चूलिका नामक अध्ययन पढ़ाना उचित है। बारह वर्षके दीक्षित निर्ग्रन्थ श्रमणको अरुणोपपात वरुणोपपात, गरुडोपपात, बेलंधरौपपात, और वैश्रमणोपपात नामक पांच अध्ययनोंको पढ़ाना उचित है । तेरह वर्ष के दीक्षित् निग्रन्थ श्रमणको उत्थान श्रुत, समुत्थान श्रुत, देवेन्द्रो - पपात और नागपरियापनिका पढ़ाना उचित है । चौदह वर्ष के दीक्षित निग्रन्थ श्रमणको स्वप्न भावना नामक अध्ययन पढ़ाना उचित है । पन्द्रह वर्ष के दीक्षित निग्रन्थ श्रमणको चारण भावना नामक अध्ययन पढ़ाना उचित है । सोलह वर्ष के दीक्षित निग्रन्थ श्रमणको तेजोनिसर्ग नामक अध्ययन पढ़ाना उचित है । सतरह वर्षके दीक्षित निग्रन्थ श्रमणको अशीविष भावना नामक अध्ययन पढ़ाना उचित है । अट्ठारह वर्षके दीक्षित निग्रन्थ श्रमणको दृष्टि विषभावना पढ़ाना उचित है । उन्नीस वर्षके दीक्षित निग्रन्थ श्रमणको दृष्टि वाद नामक अङ्ग पढ़ाना उचित है । इस प्रकार बीसवर्षका दीक्षित निर्ग्रन्थ श्रमण समस्त श्रुतका पाठी होता है ।
शान्तिचन्द्र के द्वारा उद्भुत गाथाओं में तथा उक्त सूत्रों में आचार सूत्रकृत, स्थान, समवाय, व्याख्या प्रज्ञप्ति और दृष्टिवाद नामक केवल है श्रङ्गों का ही निर्देश किया गया है- शेष का नहीं किया गया । उनके सिवाय जिनका निर्देश किया गया है, दोनोंके निर्देशों में उनकों लेकर कुछ अन्तर है । गाथाओंके अनुसार चौदह वर्ष के
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