Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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श्रुतपरिचय
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अङ्गको आगम भी कहते हैं । श्वेताम्बर सम्प्रदाय के वर्तमान ग्यारह अङ्ग आजकल आगमके नामसे ही प्रसिद्ध हैं । जो परम्परासेर चला आया हो उसे श्रागम कहते हैं । अनुयोग द्वार सूत्र में आगमके तीन भेद किये हैं- आत्मागम अनन्तरागम और परम्परागम । तीर्थङ्कर केवलज्ञानके द्वारा स्वयमेव सब पदार्थों को जानते हैं इस लिए उनके अर्थको आत्मागम कहते हैं । गणधरोंके द्वारा रचे गये सूत्रोंको सूत्रागम कहते हैं । उन सूत्रों का ज्ञान गणधरोंके लिये आत्मागम है क्योंकि उन्होंने स्वयं उनकी रचना की है। किन्तु उन सूत्रोंमें निबद्ध अर्थ का ज्ञान अनन्तरागम है क्योंकि उस अर्थका ज्ञान उन्हें तीर्थङ्कर के उपदेशसे प्राप्त होता है । इसी तरह गणधरोंके शिष्योंका सूत्रज्ञान अनन्तरागम है, क्योंकि वह उन्हें गणधरोंसे प्राप्त होता है । तथा उनके अर्थ का ज्ञान परम्परागम है क्योंकि तीर्थङ्करोंसे अर्थका ज्ञान गणधरों को प्राप्त होता है, और गणधरोंसे उनके शिष्योंको प्राप्त होता है । इस लिये परम्परासे प्राप्त होनेके कारण उसे परम्परागम कहते हैं । गणधरोंके शिष्योंसे जो अर्थ ज्ञानकी परम्परा चलती है वह न तो आत्मागम है और न अनन्तरागम है । वह सब परम्परासे प्राप्त होने के कारण परम्परागम है ।
व्यवहार सूत्रमें प्रथम आचारांगसूत्र से लेकर अष्टम पूर्व पर्यन्त अङ्गों और पूर्वोको ता श्रुत कहा है और नवम आदि शेष पूर्वोको आगम कहा है । इस भेड़का कारण यह बतलाया
१ - से किं तं श्रागमे ? दुविहे पण्णचे, तं जहा - लोईए अलोउत्तरिए अ ।'''''''से किं तं लोउत्तरिए ?...दुवालसँगं गणिपिडगं ।' - अनु०, पृ० १९२ ।
२ - ' गुरुपारम्पर्येणागच्छतीति श्रागमः । - अनु० टी०, सू० १४७ । ३५
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