Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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श्रुतपरिचय अब हम श्व ताम्बरीय तथा दिगम्बरीय साहित्यके आधार पर द्वादशांग श्रुतका अर्थात् श्रुतके बारह अंगोंका परिचय
देते हैं।
नाम ... इनका मूल नाम तो अंग है, उनकी संख्या बारह होनेसे उन्हें द्वादशाङ्ग' कहते हैं। वैसे शरीरके अवयवों को अंग कहते हैं । साधारणतया शरीरमें आठ अंग माने गये हैं-दो हाथ, दो पैर, नितम्ब, पृष्ठ, छाती, सिर । किन्तु बारह अङ्गों का भी उल्लेख मिलता है अतः श्रतरूप परम पुरुष के अङ्गोंके तुल्य होनेसे द्वादशाङ्ग कहते हैं। दिगम्बर साहित्यमें इन्हे श्रत देवताका अङ्ग कहा है। १-"नलया बाहू य तहा नियंब पुट्ठी उरो य सीसो य । अटेव दु अंगाई देहे सेसा उवंगाई॥"
-कर्मकाण्ड गो। २-"श्रुतरूपस्य परमपुरुषस्याङ्गानिवाङ्गानोबाचाराङ्ग दीनि
यस्मिन् तत् द्वादशाङ्गम् ।"-नन्दी० टी० पृ-१६३ पूर्वा । ३-'बारह अङ्गग्गिज्झा विलियमलमूढदंसहुचिलया। विविहवरचरणभूसा पसियउ सुयदेवया सुइरं ॥ .
-धव०, पु० १ पृ०६ अंगगंगबज्भणिम्मी प्रणाइमझतणिम्मलंगाए । सुयदेवय अबाएँ णमो सया चक्खुमहयाए ॥४॥
- - ज० ध० भा० १, पृ० ३॥
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