Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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५३६ जै० सा० इ०-पूर्व पीठिका जा रहा है, अधर्मवादी बलवान हो रहे हैं, धर्मवादी दुर्बल हो रहे हैं, विनयवादी हीन हो रहे हैं ।”—बुद्ध च., पृ. ५४८ । ____ इस तरह धर्म और विनयका ह्रास होनेके कारण प्रथम' संगीतिकी गई । दूसरी संगीति भी इसी कारणसे हुई। उस समय वैशालीके वज्जिपुत्तक भिक्षु उपोसथके दिन कांसेकी थालीको पानीसे भरकर और भिक्षुसंघके बीचमें रखकर आने जानेवाले वैशालीके उपासकोंसे उसमें सोना, चाँदी, सिक्का डालने के लिये कहते थे और फिर संचित द्रव्यको आपसमें बाँट लेते थे। आयुमान यशने इस अकार्यका विरोध किया। इसपर से देश-देशान्तरोंके स्थविरोंको एकत्र करके संगीति की गई। बु. च. पृ. ५५६।
तीसरी संगीति अशोकके राज्यकालमें पाटलीपुत्र में हुई। उस समय अशोकाराममें भिक्षुओंने उपोसथ करना छोड़ दिया था
१ भगवान बुद्ध के प्रियशिष्य आनन्दको भगवान के सब सूत्रान्त कण्ठस्थ थे। उनकी स्मृति प्रबल थी इसो कारणसे प्रथम संगाति में श्रानन्दने धर्म ( सूत्रान्त ) का पाठ किया । इसी कारगासे सूत्रान्त इस वाक्यसे प्रारम्भ होते हैं-'एवं मे सुतं' ( ऐसा मैने सुना )।
-इस दूसरी संगीतिके समय बौद्ध संघमें भेद हो गया और स्थविर तथा महासांघिक इस प्रकार दो भेद हो गये। वसुमित्र के अनुसार स्थविर और महासांघिकका भेद अशोकके राज्यकाल में पाटलीपुत्र में हुआ था। चुल्लवग्ग के अनुसार निर्वाणके १०० वर्षके पश्चात् संव में भेद हुआ। इस संगीतिके पूर्व पश्चिमके भिक्षुषोंने अपनी एक सभा मथुराके पास होगंगमें की थी,-बौ० ध० द॰, पृ॰ ३५ ।
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