Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
View full book text
________________
संघ भेद
४६१
प्रतीत होती है। यद्यपि दिगम्बर साहित्यमें पाटलीपुत्र या वलभीमें होने वाली किसी भी परिषद्का संकेत तक भी नहीं है , तथापि वल्भीमें श्वेताम्बर सम्प्रदायकी उत्पत्ति बतलानेसे यह स्पष्ट है कि वलभीमें हुई वाचनामें जो संकलित आगम ग्रन्थोंको पुस्तकारूढ़ किया गया उससे श्वेताम्बर-दिगम्बर भेद स्थायी होगया। वलभी वाचनाका समय वीर निर्वाण सं० ६८० और वाचनान्तरसे ६६३. है जो वि० सं०५१० और ५२३ होता है
किन्तु दोनों सम्प्रदायोंमें दिगम्बर श्वेताम्बर भेदका काल' वि०. सं० १३६-१३. बतलाया है। और उक्त वलभी वाचना उससे लगभग पौने चार सौ वर्ष बाद हुई। तथा श्वेताम्बर कथाका कोई भी ऐतिहासिक आधार न होनेसे तदनुसार विक्रमकी द्वितीय शताब्दीमें दिगम्बरोंकी उत्पत्ति होनेके भी किन्हीं चिन्होंका पता लगना शक्य नहीं है। ___ मथुराके कंकाली टीलेसे प्राप्त जैन अवशेष कनिष्क, और हुविष्क और वासुदेवके समयके हैं जिनका समय ईसाको प्रथम तथा द्वितीय शताब्दी माना जाता है । वहाँसे प्राप्त शिलालेखोंके सम्बन्धमें डा० बुलहरने लिखा है कि-'शिलालेखोंमें जो आचार्यों
और उनके गण-गच्छोंका उल्लेख मिला है वह जैनोंके इतिहासके लिये कम महत्त्वपूर्ण नहीं है। शिलालेखोंका कल्पसूत्रके साथ मेल खाजाना एक तो यह प्रमाणित करता है कि मथुराके जैन
१–'वायणंतरे पुण अयं तेण उए संवच्छरे काले गच्छइ इइ दीसई:
कल्पसूत्र। २-छत्तीसे वरिस सए विक्कमरायस्स मरणपत्तस्स ।
सोरटे वलहीए उप्पण्णो सेवडो संघो ॥११॥ -दर्शनसार
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org