Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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जै० सा० इ०-पूर्व पीठिका विनय विजयने लोकप्रकाशमें' उक्त वाचनाओंका निर्देश किया है ! उससे व्यक्त होता है कि दुर्भिक्षके पश्चात् एक साथ दो सम्मेंलन हुए एक मथुरामें और एक वलभीमें । लोकप्रकाशमें इतना विशेष लिखा है कि वलभी सम्मेलनके प्रमुख देवर्द्धि थे और मथुरा सम्मेलनके प्रमुख स्कन्दिलाचार्य थे। किन्तु श्वेताम्बर स्थविरावलीके अनुसार देवर्द्धिसे स्कन्दिलाचार्य बहुत पहले हुए थे। अतः दोनोंकी समकालीनता संभव नहीं है। ____ भद्रेश्वर की कथावलीमें इनसे कुछ भिन्न ही उल्लेख मिलता है उसमें लिखा है-'मथुरामें श्रुतसमृद्ध स्कन्दिल नामक आचार्य थे और वलभी नगरी में नागार्जुन नामक आचार्य थे। दुष्काल पड़ने पर उन्होंने अपने साधुओंको भिन्न-भिन्न दिशाओंमें भेज दिया। सुकाल होने पर वे पुनः मिले। और जब अभ्यस्त शास्त्रोंका परावर्तन करने लगे तो उन्हें ज्ञात हुआ कि वे पढ़े हुए शास्त्रोंको प्रायः भूल चुके हैं। श्रुतका विच्छेद न हो, इसलिये आचार्योने सिद्धान्तका उद्धार करना शुरू किया। जो विस्मृत नहीं हुआ था, उसे वैसे ही स्थापन किया और जो भूला जा चुका था वह स्थल पूर्वापर सम्बन्ध देखकर व्यवस्थित किया गया।' १- सतः सुभिक्षे संजाते संघस्य मेलकोऽभवत् ।
वलभ्यां मथुरायां च सूत्रार्थघटनाकृते ।। वलभ्यां संगते संघे देवर्द्धिगणिरग्रणीः । मथुरायां संगते स्कन्दिलाचार्योऽग्रणीरभूत् ।।'' "ततश्च वाचनाभेदस्तत्र जातः कचित् क्वचित् । विस्मृतस्मरणे भेदो जातु स्यादुभयोरपि ॥"
-लो० प्र०
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