Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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संघ भेद
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प्रचलित है । किन्तु एक समय हिन्दुओं में भी नग्न'
लिंगकी पूजा मूर्तियों का एकदम अभाव नहीं था ।
डा० डी०आर० भण्डारकर के Some aspects of ancient Indian culture' से पता चलता है कि बंगाल, बिहार और उड़ीसा में शिवको नग्न ही अंकित करनेकी परिपाटी रही है. चाहे शिवका रूप नटराजका हो, या पार्वती परिणयका हो या अर्धनारीश्वरका हो । बंगाल के पहाड़पुर में जो शिवकी प्रतिमा है, और उड़ीसा चौदुर ( Chaudwar ) में जो उमामहेश्वरकी प्रतिमा है उनमें उर्ध्वलिंग अंकित है । दक्षिण में तथा भारतके अन्य भागों में पाई गई लकुलीश की मूर्तियाँ भी इसी रूप में मिलती हैं।
इसी तरह बालकृष्णकी भी नग्न मूर्तियाँ पाई जाती हैं। इस तरह की एक पीतल की मूर्ति बम्बई के संग्रहालय में है, एक मद्रास के संग्रहालय में है । बेलूर के एक मन्दिर में रति कामकी नग्न मूर्ति पाई. जाती है । यक्षियोंकी भी नग्न मूर्तियाँ पाई जाती हैं। प्रश्न होता है कि नग्न मूर्तियोंकी परम्पराका उद्भव कबसे है और क्यों इस परम्पराका लोप हिन्दुओंमें होगया ।
यहाँ यह स्पष्ट कर देना अनुचित न होगा कि 'शिव' द्रावण अथवा अनार्य देवता था । उसे आयने पीछे से अपने देवताओं में सम्मिलित कर लिया । इस विषय में हम पहले लिख आये हैं ।
अपनी उक्त पुस्तक में डा० भण्डारकरने कृष्णको भी अनार्य प्रमाणित किया है उसके विस्तार में हम जाना नहीं चाहते । सिन्धु घाटी सभ्यता द्रविड़ सभ्यता थी । मोहेजोदड़ो और हड़प्पा से प्राप्त सीलों और पाषाणों पर अंकित मूर्तियाँ प्रायः नग्न हैं । वहाँसे प्राप्त
१ - भां० इं० पत्रिका, जि० २३, पृ० २१४ आदि ।
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