Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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जै० सा० इ० - पूर्व पीठिका
प्रधानता विष्णुको लोकप्रसिद्ध कृष्ण के साथ मिलनेका नतीजा है । इन दोनों विकल्पोंमेंसे मुझे दूसरा विकल्प ही अत्यधिक संभव प्रतीत होता है । हम देख चुके हैं कि वेदोंमें विष्णुकी प्रधानता प्रकट नहीं होती । और महाभारत में वह हमें विशेष प्राचीन प्रतीत नहीं होती ।' (रि० ई० पृ० १६६-६७ )
छा० उपनिषद् (३-१७-६) में घोर आङ्गिरस के शिष्य देवकीपुत्र कृष्णका उल्लेख आता है । मैक्समूलर महाभारत और पुराणों के देवकीपुत्र कृष्ण और उपनिषदके देवकीपुत्र कृष्णको एक नहीं मानते । तथा मैक्डानल और कीथको उनकी एकता में सन्देह है । उपनिषद के कृष्ण के विषय में उन्होंने वैदिक इन्डेक्स में लिखा है - 'परम्परा तथा ग्रियर्सन गार्ब जैसे कतिपय आधुनिक विद्वान् उसे महाभारतका नायक कृष्ण मानते हैं जो बाद में देवता के रूप में पूजा जाने लगा | उनके मतानुसार कृष्ण क्षत्रिय था और नैतिक धर्मोंका उपदेष्टा तथा ब्राह्मण धर्मका विरोधी था । यह बात एकदम सन्देहास्पद है । उचित तो यह प्रतीत होता है या तो नामोंकी समानता आकस्मिक है, या उपनिषदका उल्लेख | बर्थने दोनों कृष्णोंको तो एक माना है किन्तु उपनिषदमें कृष्णके उल्लेखको एकदम पौराणिक माना है । (रि० इ० पृ० १९६८ ) ।
डा० कीथका कहना है कि 'महाभारतका कृष्ण केवल एक मामूली धर्मोपदेष्टा नहीं है । वहां जब वह उपदेश देता है तो वह अपनेको परमेश्वर के रूपमें प्रकट करता है और हम इस तथ्य की उपेक्षा नहीं कर सकते; क्योंकि उसका वह देवीरूप समस्त महाभारत में स्पष्ट रूपमें अंकित है । वहाँ उसे एक जगह 'गोपीजन वल्लभ' लिखा है । यह विशेषण एक अनुमानित क्षत्रिय उपदेष्टा के लिए कुछ विचित्र सा लगता है । किन्तु ग्वाल जीवन बिताने वाले कृष्ण
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