Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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जै० सा० इ०-पूर्व पीठिका चेलना जैन थी । चेलनाके प्रयत्नसे ही राजा श्रेणिकने जैन धम धारण किया और भगवान महाबीर की उपदेश सभा का प्रधान श्रोता बना।
जब लगभग ४२ वर्षकी अवस्थामें महाबीर भगवानको केवल ज्ञान प्राप्त हुआ और राजगद्दीके बाहर स्थित विपुलाचल पर उनका पदार्पण हुआ उस समय राज गृहीमें राजा श्रेणिक चेलनाके साथ निवास करते थे।
हरिषेणने अपने कथा कोशमें श्रेणिककी कथाके अन्तमें लिखा है कि जब चतुर्थ कालमें तीन वर्ष, आठ मास और सोलह दिन शेष रहे तब महाबीर भगवानका निर्वाण हुआ तथा पंचम कालके इतने ही दिन बीतने पर राजा श्रोणिक की मृत्यु हुई। अर्थात् भगवान महाबीरके निर्वाणसे सात वर्ष पाँच मास पश्चात् श्रेणिककी मृत्यु हुई । किन्तु जैन और बौद्ध उल्लेखोंसे इसका समर्थन नहीं होता। यह सर्वविदित है कि कुणिकने बड़ा होने पर अपने पिता श्रेणिकको कारागारमें डाल दिया था और
१-"कत्थ कहियं ? सेणियराए सचेलणे महामंडलिए सयलबसुहा
मंडल भुजंते" । ज० ध०, भा० १, पृ० ७३
२-किन्तु अब सभी ऐतिहासिक अजात शत्रु (कुणिक) पर लगाये
गये इस इलजाम को झूठा मानते हैं । वह कई अंशोंमें बुद्ध के प्रतिद्वन्दी देवदत्तको सहारा देता था इसी कारण उस पर यह इल्जाम लगाया होगा ऐसा उनका कहना है । भा० इ० रू० पृ० ४६३ । वृ० क० को० में हरिषेणने भी इस घटना की चर्चा नहीं की है।
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