Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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संघ भेद
४५१ पार्श्वनाथका अनुयायी निम्रन्थ था और पार्श्वनाथके अनुयायी निग्रन्थोंमें कठोर आचार नहीं पाला जाता था। ___ यह हम पहले बतला आये हैं कि पार्श्वनाथके अनुयायी शिष्योंमें भगवान महावीरके समय तक धीरे धीरे शिथिलाचार
आ गया था और वे सुखशील भी बन गये थे। सञ्चक निग्रन्थ भी उनमें से हो सकता है। दूसरी बात यह है कि सच्चक गौतम बुद्धके सामने ऐसे श्रमण ब्राह्मणोंकी चर्चा करता है जो या तो केवल कायिक भावनामें तत्पर हो विहरते हैं या केवल चित्तकी भावनामें हो विहरते हैं । वह कहता है___'भो गौतम ! कोई कोई श्रमण ब्राह्मण कायिक भावनामें तत्पर हो विहरते हैं, चित्तकी भावनामें नहीं। वह शारीरिक दुःखमय वेदनाको पाते हैं । " भो गौतम ! यहाँ कोई श्रमण ब्राह्मण चित्तकी भावनामें तत्पर हो विहरते हैं. कायाकी भावनामें नहीं। भो गौतम वह चैतसिक दुःखवेदनामें पड़ते हैं।' (बु. च०, पृ० १४४)
जो केवल काय भावनामें तत्पर हो विहरते हैं उनमें उसने मक्खलि गोशाल और उसके अनुयायिओंको रखते हुए उनकी बुराई की है कि वे खूब खाते पीते और मौज भी करते हैं । चित्त भावनाके विषयमें पूछने पर सच्चक मौन रह जाता है। जब बुद्ध उसे भावितकाय और भावित चित्त कैसे हुआ जाता है यह बतलाते हैं तो सच्चक कहता है-'भो गौतम ! मेरा विश्वास है कि आप गौतम भावितकाय और भावितचित्त हैं ?'
तब गौतम कहते हैं-'जरूर, अग्निवेश! तूने तानेसे यह बात कही है।'
उक्त वार्तालापसे प्रकट होता है कि सच्चक केवल काय भावना वालों और केवल तिच भावना वालोंका मखोल करनेके लिये बुद्ध
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