Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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संघ भेद
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विस के लेखसे प्रकट है कि 'दिगम्बर' साधुओंके एक प्राचीन सम्प्रदाय के रूप में माने जाते रहे हैं। तथा सभी विरोधी धर्मगुरु अपने सिद्धान्तों और धार्मिक आचरणों पर जैन धर्मके प्रभावको अपनाये हुए हैं जैसा कि अब हम बतलायेंगे । गोशाल मक्खलि पुत एक रईसका दास था । उसके मालिकने उसे उसके वस्त्रोंसे बांध दिया । वस्त्र ढीले थे, इससे गोशालक उनसे छूटकर नंगा भाग खड़ा हुआ । इस स्थितिमें वह दिगम्बर जैनोंके या बौद्धोंके पास गया । अपना एक सम्प्रदाय कायम किया । जैनोंके अनुसार वह महावीरका शिष्य था फिर उससे स्वतन्त्र हो गया । " पूरणकश्यपने यह सोचकर कि दिगम्बर रहनेसे मेरी विशेष प्रतिष्ठा होगी, कपड़े पहनना स्वीकार नहीं किया । अजित केश कम्बली वृक्षों में जीव मानता था । पूकुद्ध कात्यायन पानी में जीव मानता था ।'' इस तरह उस समयके चार तीर्थङ्कर जैनधर्मके सिद्धान्तों से प्रभावित थे। इससे प्रकट होता है कि जैन विचार और चार महावीर के समय में अवश्य ही प्रचलित रहे हैं । इससे भी पता चलता है कि निग्रन्थ महावीर से बहुत पहले से चले आते थे ।'
डा० याकोवीके ही उक्त शब्दों के प्रकाशमें हमें उनके अभिमत - के विरुद्ध कुछ विशेष कहने की आवश्यकता नहीं रह जाती ।
डा० हलरने भी महावीरके निम्रन्थ सम्प्रदायका महत्व बतलाते हुए लिखा है- बुद्धके प्रतिद्वन्दी अन्य सम्प्रदायोंका -वर्णन करते हुए बौद्ध ग्रन्थोंमें लिखा है कि उन्होंने निर्ग्रन्थोंकी नकल की है और वे नंगे रहते हैं । अथवा लोग उन्हें निम्रन्थ समझते हैं क्योंकि उन्हें घटनावश वस्त्र त्यागना पड़ा है। यदि वर्धमानका सम्प्रदाय महत्वशाली न होता तो इस प्रकारके उद्गारोंका प्रकटीकरण शक्य न होता । (इं० से० जै० पृ० ३६ )
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