Book Title: Jain Sahitya ka Itihas Purv Pithika
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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संघ भेद
४६७ श्रावकके लिए भी शीतल जल और बीजका सेवन वर्जित है, तब मुनिका तो कहना ही क्या है ? __दिगम्बर जैन साधु ४६ दोषोंको बचाकर आहार करता है। उन दोषोंमें एक दोषका नाम उन्मिश्र' है। पृथिवी, अप्रासुक जल, . हरित काय, बीज और त्रसोंसे मिश्रित आहारको उन्मिश्र कहते हैं। अर्थात् यदि भोजनमें शीतल जल और बीजका मिश्रण हो जाये तो वह आहार उन्मिश्र दोषसे युक्त होनेके कारण दिगम्बर जैन साधुके लिये अग्राह्य है। ऐसी स्थितिमें यह कहना कि दिगम्बर जैन साधु शीतल जल और बीजोंको ग्रहण करते हैं, बिल्कुल निराधार
और असत्य है। इससे भी भयानक एक दूसरी भूल है। ___ डा० हानलेने लिखा है कि दिगम्बर साधु ५ फीट ऊँचा एक दण्ड हाथमें लिये रहते हैं, यह उनके आजीविक होनेका दूसरा प्रमाण है, क्योंकि आजीविक एकदण्डी थे। (इं० इ. रि०, पृ०२६७)
दिगम्बर साधु एक मयूरके पंखोके पीछी और कमण्डलुके सिवाय और कोई उपकरण अपने पास नहीं रखते। जिस ५ फिट ऊँचे दण्डको हाथमें लिए रहनेका निर्देश डा० हानलेने किया है, वह श्वेताम्बर साधुओंका उपकरण है, दिगम्बर जैन साधुओंका नहीं। यदि यह दण्ड आजीविकोंकी देन है तो श्वेताम्बर साधुओं को भी आजीविक मानना होगा क्योंकि जैनोंमें वे ही एकदण्डी
१ "पुढवी श्राऊ य तहा हरिदा वीया तसा य सजीवा । पंचेहि तेहिं मिस्सं पाहारं होदि उम्मिस्सं ॥४७२॥ मूलाचा०' "पृथ्व्या ऽ प्रासुकया ऽ द्भिश्च वीजेन हरितेन यत् । मिश्रं जीवत्त्र सैश्चान्न महादोषः स मिश्रकः ॥३६॥"
--अनगार०, अ०५ ।
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